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ब्रह्मचर्य-सूत्र
(६५) जो मनुष्य इस भौति दुष्कर ब्रह्मचर्य का पालन करता है, उसे देव, दानव, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस और किनर प्रावि सब नमस्कार करते है।
यह ब्रह्मचर्य धर्म ध्रुव है, नित्य है, शाश्वत है और जिनोपदिष्ट है। इसके द्वारा पूर्वकाल में कितने ही जीव सिद्ध हो गये है, वर्तमान में हो रहे हैं, और भविष्य में होगे।