Book Title: Samyaktva Sara Shatak
Author(s): Gyanbhushan Maharaj
Publisher: Digambar Jain Samaj

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Page 421
________________ पारिभाषिक शब्दों का अर्थ सवर-अनासक्त प्रवृत्ति-प्रात्मा की शुद्ध प्रवृत्ति । अनुत्तर---उत्तमोत्तम। अनगार-जिमका अमुक एक घर नहीं है अर्थात् निरतर सविधि भ्रमणशील साधु । केवली-केवल ज्ञानवाला-सतत शुद्ध प्रात्मनिष्ठ । शैलेशी-शिलेश-हिमालय, हिमालय के समान प्रकप स्थिति । परीपह-जव साधक साधना करता है तव जो जो विघ्न आते हैं उनके लिए परीपह गन्द प्रयुक्त होता है। साधक को उन सब विघ्नो को सहन करना ही चाहिए इसलिए उनका नाम 'परीपह' हुआ। प्रोपपातिक-उपपात अर्थात् स्वर्ग में या नरक में जन्म होना। प्रौपपातिक का अर्थ हुआ स्वर्गीय प्राणी या नारकी प्राणी। अस-धूप से पास पाकर छांह का और शीत से पास पाकर धूप का प्राश्रय लेनेवाला प्राणी-अस । तियंच-देव, नरक और मनुष्य को छोडकर शेष जीवो का नाम "तियंच है। निग्रन्य-गांठ देकर रखने लायक कोई चीज जिनके पास नही है-अपरिग्रही-साधु।

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