Book Title: Samyaktva Sara Shatak
Author(s): Gyanbhushan Maharaj
Publisher: Digambar Jain Samaj

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Page 424
________________ [ १५८ ] नोदरी-भूख से कुछ कम खाना-उदर को ऊन रखना पूरा न भरना। संलेखना-कषाय का अन्त करने के लिए उसके निर्वाहक और पोषक प्रान्तर और बाह्य निमित्तो को घटाते हुए कषाय को पतला बनाने की-शरीर के अन्त तक चलती हुई प्रवृत्ति । वैयावृत्त्य-बाल, वृद्ध,रोगी ऐसे अपने समान धर्मियो की सेवा। लेश्या-आत्मा के परिणाम-अध्यवसाय । समिति-शारीरिक, वाचिक और मानसिक सावधानता । गुप्ति-गोपन करना-सरक्षण करना; मन, वचन और शरीर को दुष्ट कार्यों से बचा लेना। ईर्या-गमनागमन वगेरे क्रिया । एषणा-निर्दोष वस्त्र पात्र और खानपान की शोध करना। आदान-निक्षेपकोई भी पदार्थ को लेना या रखना-मूकना । उच्चारसमिति-शौच क्रिया वा लघुशका अर्थात् किसी भी प्रकार का शारीरिक मल । मल को ऐसे स्थान में छोड़ना जहां किसी को लेश भी कष्ट न हो और जहाँ कोई भी आता जाता न हो और देख भी न सके ।

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