Book Title: Samyaktva Sara Shatak
Author(s): Gyanbhushan Maharaj
Publisher: Digambar Jain Samaj

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Page 423
________________ [ १८७ ] श्रद्धान-श्रद्धा-आप्त पुरुप में दृढ विश्वास । सचित्त-चित्तयुक्त-प्राणयुक्त-जीवसहित कोई भी पदार्थ । अचित्त-सचित्त से उलटा-निर्जीव। कषाय-पात्मा के स्वरूप को कषनाश करनेवाले, क्रोध, मान, माया और लोभ ये चार महादोष । अगृद्ध-अलोलुप। मति-इन्द्रियजन्य ज्ञान । श्रुत-शास्त्रज्ञान। मन पर्याय दूसरो के परोक्ष वा अपरोक्ष मन के भावो को ठीक पहचाननेवाला ज्ञान। अवधि-रूपादियुक्त परोक्ष वा अपरोक्ष पदार्थ को जान सकनेवाला ' मर्यादित ज्ञान। केवल-सव को जान सकनेवाला ज्ञान । ज्ञानावरणीय-ज्ञान के प्रावरण रूप कर्म-ज्ञान, ज्ञानी वा ज्ञान के साधन के प्रति पादि दुर्भाव रखने से ज्ञानावरणीय कर्म बंधते है। दर्शनावरणीय-दर्शनशक्ति के प्रावरणरूप कर्म । वेदनीय-सासारिक सुख वा दुख के साधनरूप कर्म । मोहनीय-मोह को उत्पन्न करनेवाले कर्म-मोहनीय कर्म के ही प्राबल्य से आत्मा अपना स्वरूप नही पहचानता।

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