Book Title: Samyaktva Sara Shatak
Author(s): Gyanbhushan Maharaj
Publisher: Digambar Jain Samaj

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Page 422
________________ [ १८६ ] एषणीय-शोधनीय-खोज करने लायक-जिनकी उत्पत्ति दूषित है या नहीं इस प्रकार गवेपणा के योग्य । विड-गोमूत्रादिक द्वारा पका हुआ नमक । रजोहरण-रज को हरनेवाला साधन-जो आजकल पतली ऊन की डोरियो से बनाया जाता है-जैन साधु निरंतर पास रखते है जहाँ बैठना होता है वहाँ उससे झाड़कर वैठते है। जिसका दूसरा नाम 'ओषा-चरवला' है। मानव-आसक्ति युक्त अच्छी या दुरी प्रवृत्ति । द्वीन्द्रिय-स्पर्श और रस, इन दो इन्द्रियो वाले जीव-जैसे जोक इत्यादि। त्रीन्द्रिय-स्पर्श, रस सौर घ्राण इन तीन इन्द्रियो वाले जीव जैसे चीटी आदि। चतुरिन्द्रिय-स्पर्श, रस, प्राण और नेत्र इन चार इन्द्रियो वाले प्राणी-जैसे भ्रमर आदि । किंपाकफल-जो फल देखने मे और स्वाद मे सुन्दर होता है पर खाने से प्राण का नाश करता है। पुद्गल-रूप, रस, गध, स्पर्श और शब्द वाले जड पदार्थ या जड़ पदार्थ के विविध रूप। निर्जरा-कर्मों को नाश करने की प्रवृत्ति-अनासक्त चित्त से प्रवृत्ति करने से प्रात्मा के सब कर्म नाश हो जाते है।

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