Book Title: Samyaktva Sara Shatak
Author(s): Gyanbhushan Maharaj
Publisher: Digambar Jain Samaj

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Page 417
________________ १५१ विवाद-सूत्र ( ३३८ ) वेन तो ठीक-ठीक कर्म-सन्धि का ही ज्ञान रखते है, और न उन्हें कुछ धर्म का ही मान है । जो ऐसी अनर्गल वातें करते है, वे ससार (समुद्र) से पार नही हो सकते। ( ३३६ ) जरा, मरण और व्याधि से पूर्ण ससार-चक्र में वे लोग वारवार नाना प्रकार के दुख भोगते रहते है। ( ३४० ) वे लोग कभी तो ऊंची योनि में जाते है, और कभी नीची योनि में जाते हैं। यो ही इधर-उधर परिभ्रमण करते हुए अनन्त वार गर्भ में पैदा होगे, जन्म लेंगे और मरेंगे-जिनश्रेष्ठ ज्ञातपुत्र महावीर स्वामी ने ऐसा कहा है।

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