Book Title: Samyaktva Sara Shatak Author(s): Gyanbhushan Maharaj Publisher: Digambar Jain Samaj View full book textPage 416
________________ १८० महावीर-वाणी ( ३३८ ) वे नावि संघि नच्चाणं, न ते धम्मविऊ जणा। ने ते उ बाइणो एवं, न ते संसारपारगा ॥१७॥ ( ३३६ ) नाणाविहाई दुक्खाई, अणुहोन्ति पुणो पुणो । संसारचक्कवालम्मि, मच्चवाहिजराफुले ॥१८॥ ( ३४० ) उच्चावयाणि गच्छन्ता, गम्भमेस्सन्तिणन्तसो। नायपुत्ते महावीरे एवमाह जिणुतमे ॥१९॥Page Navigation
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