Book Title: Samyaktva Sara Shatak
Author(s): Gyanbhushan Maharaj
Publisher: Digambar Jain Samaj

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Page 414
________________ १७८ महावीर-चाणी ( ३३४ ) जग-हेतुवायो इणमन्नं तु अन्नाणं, इहमेगेसिमाहिया । देव-उत्ते अयं लोए, बंभउते य आवरे ॥१३॥ ( ३३५ ) ईसरेण कड़े लोए, पहाणाइ तहाऽवरे । जीवाजीनसमाउते सुहदुक्खसमभिए ॥१४॥ ( ३३६ ) सयंभुणा फड़े लोए, इइ वृत्तं महेसिणा। मारेण संथुना माया, तेण लोए प्रसासए ॥१५॥ ( ३३७ ) उपसंहारो एवमेयाणि जम्पन्ता, वाला पंडियमाणिणो। निययानिययं सन्त, प्रयाणन्ता अबुद्धिया ॥१६॥

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