Book Title: Samyaktva Sara Shatak
Author(s): Gyanbhushan Maharaj
Publisher: Digambar Jain Samaj
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१७८
महावीर-चाणी
( ३३४ )
जग-हेतुवायो
इणमन्नं तु अन्नाणं, इहमेगेसिमाहिया । देव-उत्ते अयं लोए, बंभउते य आवरे ॥१३॥
( ३३५ )
ईसरेण कड़े लोए, पहाणाइ तहाऽवरे । जीवाजीनसमाउते सुहदुक्खसमभिए ॥१४॥
( ३३६ )
सयंभुणा फड़े लोए, इइ वृत्तं महेसिणा। मारेण संथुना माया, तेण लोए प्रसासए ॥१५॥
( ३३७ )
उपसंहारो
एवमेयाणि जम्पन्ता, वाला पंडियमाणिणो। निययानिययं सन्त, प्रयाणन्ता अबुद्धिया ॥१६॥

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