Book Title: Samyaktva Sara Shatak
Author(s): Gyanbhushan Maharaj
Publisher: Digambar Jain Samaj

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Page 415
________________ १७२ विवाद-सूत्र ( ३३४) जगत्कर्तृत्त्ववाद जगत् की उत्पत्ति के सम्बन्ध में कितने ही लोगो का यह भ्रान्तिमय वक्तव्य है -"कोई कहते हैं कि यह लोक देवो ने बनाया है।" --"कोई कहते है कि यह लोक ब्रह्मा ने बनाया है।" ( ३३५ ) --"कोई कहते है कि यह लोक ईश्वर ने बनाया है।" -"कोई कहते है कि जड और चैतन्य से युक्त तया सुख और दुख से समन्वित यह लोक प्रधान (प्रकृति) आदि के द्वारा बना है।" ( ३३६ ) --"कोई कहते है कि यह लोक स्वयम्भू ने बनाया है, ऐसा हमारे महर्षि ने कहा है। अनन्तरमार ने माया का विस्तार कियाइस कारण लोक अशाश्वत (अनित्य) है।" ( ३३७ ) उपसंहार अपने-आपको पण्डित माननेवाले बुद्धिहीन मूर्ख इस प्रकार की अनेक बातें करते है । परन्तु नियति क्या है और अनियति क्या, यह कुछ भी नहीं जानते, समझते ।

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