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प्रमाद-स्थान-सूत्र जिसके पास लोम करने जैसा कुछ भी पदार्थ-संग्रह नहीं है, उसका लोम चला गया।
( १५४ ) दूध और दही आदि रसो का अधिक मात्रा में सेवन नहीं करना चाहिए; क्योकि प्राय. रस मनुष्यो मै मादकता पैदा करते है । मत्त मनुष्य की और काम-वासनाएं वैसे ही दौडी आती है, जैसे स्वादिष्ट फलवाले वृक्ष की ओर पक्षी।
( १५५ )
जो मूर्ख मनुष्य सुन्दर रूप के प्रति तीव आसक्ति रखता है, वह अकाल ही नष्ट हो जाता है। रागातुर व्यक्ति रूप-दर्शन की लालसा में वैसे ही मृत्यु को प्राप्त होता है, जैसे दीये की ज्योति देखने की लालसा में पतग ।
( १५६ )
रूप मे आसक्त मनुष्य को कहीं से भी कमी किंचिन्मान भी सुख नहीं मिल सकता। खेद है कि जिसकी प्राप्ति के लिए मनुष्य महान् कष्ट उठाता है, उसके उपभोग में कुछ भी सुख न पाकर केवल क्लेश तथा दुःख ही पाता है।