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मिक्षु-सूत्र भली भांति समाधिस्थ करता है, जो सूत्रार्थ का पूरा जाननेवाला है, वही भिक्षु है।
( २६५) जो अपने सयम-साधक उपकरणोतक में भी मूर्छा (आसक्ति) नही रखता, जो लालची नही है, जो अज्ञात परिवारो के यहां से भिक्षा मांगता है, जो संयम-पथ मे वाधक होनेवाले दोपो से दूर रहता है, जो सरीदने-बेचने और सग्रह करने के गृहस्थोचित धधो के फेर मे नही पडता, जो सव प्रकार से नि सग रहता है, वही भिक्षु है।
( २९६ ) जो मुनि अलोलुप है, जो रसों में अगृद्ध है, जो अज्ञात कुल की भिक्षा करता है, जो जीवन की चिन्ता नहीं करता, जो ऋद्धि, सत्कार और पूजा-प्रतिष्ठा का मोह भी छोड देता है, जो स्थितात्मा तथा निस्पृही है, वही भिक्षु है।
( २९७ ) जो दूसरो को यह दुराचारी है ऐसा नहीं कहता, जो कटु वचन -जिससे सुननेवाला क्षुब्ध हो-नही बोलता, 'सव जीव अपनेअपने शुभाशुभ कर्मों के अनुसार ही सुख-दुःख भोगते हैं। ऐसा जानकर जो दूसरों की निन्ध चेष्टानो पर लक्ष्य न देकर अपने सुधार की चिंता करता है, जो अपने आपको उन तप और त्याग आदि के गर्व से उद्धत नहीं बनाता, वही भिक्षु है ।
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