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महावीर-वाणी अझप्परए सुसमाहिमप्पा,
सुत्तत्थं च वियाणइ जे स भिक्खू ॥७॥
( २९५ )
उवहिम्मि अमुच्छिए अगिद्ध,
अन्नायउंछ पुलनिप्पुलाए। कयविक्कयसनिहिलो विरए,
सव्वसंगावगए य जे स भिक्खू ॥
( २९६ ) अलोल भिक्खू न रसेसु गिद्ध,
उंछ घरे जीविय नाभिकखे। हड्डि च सपकारण-पूयणं च,
चए ठियप्पा अणिहे जे स भिक्खू ॥६॥
( २९७ ) न परं धइज्जासि अयं कुसीले,
जेणं च फुप्पेज न ले वएज्जा। जाणिय पत्तेयं पुण्ण-पावं,
अत्ताणं न समुक्कसे जे स भिक्खू ॥१०॥