Book Title: Samyaktva Sara Shatak
Author(s): Gyanbhushan Maharaj
Publisher: Digambar Jain Samaj

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Page 407
________________ :२४: विवाद-सूत्र ( ३२२) नास्तिक वाद कितने ही लोगो की ऐसी मान्यता है कि इस ससार में जो कुछ भी है वह केवल पृथ्वी, जल, तेज, वायु और पांचवां आकाशये पांच महाभूत ही है। ( ३२३ ) उक्त महाभूतो में से एक (आत्मा) पैदा होती है, भूतो का नाश होने पर देही (आत्मा) का भी नाश हो जाता है। अर्थात्जीवात्मा कोई स्वतन्य पदार्य नहीं है। वह पांच महाभूतो में से उत्पन्न होता है, और जब वे नष्ट होते है, तव उनके साथ ही स्वय भी नष्ट हो जाता है। (३२४ ) ब्रह्मवाद ___ जैसे,पृथ्वी का समूह (पृथ्वीस्तूप) एक (एकसमान) है, तो भी पर्वत, नगर, घट, गराव आदि अनेक रूपो मे पृथक्-पृथक् मालूम होता है। उसी तरह समस्त विश्व भी विज्ञ-स्वरुप (एक ही चैतन्य पात्माके रूप में समान) है,तथापि भेद-बुद्धि के कारण वन, वृक्ष प्रादि जड तथा पशु, पक्षी,मनुष्य प्रादि चैतन्य के रूप मे पृथक्-पृथक् दिखाई देता है ।

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