Book Title: Samyaktva Sara Shatak
Author(s): Gyanbhushan Maharaj
Publisher: Digambar Jain Samaj

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Page 411
________________ विवाद-सूत्र ( ३२८ ) स्कन्धवाद कितने ही वाल (अज्ञानी) ऐसा कहते है कि संसार में मात्र रूपादि पाँच ही स्कन्ध है और वे सव क्षणयोगी-अर्थात् क्षण-क्षण में उत्पन्न और नष्ट होनेवाले है। इनके अतिरिक्त, सहेतुक या निर्हेतुक तथा भिन्न या अभिन्न दूसरा कोई भी (आत्मा जैसा) पदार्थ नहीं है। ( ३२६ ) नित्यवाद कितने ही लोगो का ऐसा कहना है कि पांच महाभूत है, और इनसे भिन्न चित्स्वरुप छठा आत्मा है। तथा ये सब आत्मा और लोक शाश्वत है-नित्य है। ( ३३० ) यह जड और चैतन्य-उभयस्वरूप जगत् न तो कभी नष्ट होता है, न कभी उत्पन्न ही होता है । असत् की कभी उत्पत्ति नही होती, सत् का कभी नाश नही होता; इसलिए सब पदार्य सर्वथा नियतता (नित्यता) को प्राप्त है।

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