Book Title: Samyaktva Sara Shatak
Author(s): Gyanbhushan Maharaj
Publisher: Digambar Jain Samaj
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१७२
महावीरवाणी ( ३२५)
तज्जीवतच्छरीरवाओ
पत्तयं कसिणे आया जे बाला जे य पंडिया। सन्ति पिच्चा न ते सन्ति, नत्यि सत्तोववाइया ||
. ( ३२६ ) नत्यि पुण्णे व पावे वा, नस्थि लोए इनोऽवरे।' सरीरस्स विणासेणं, विणासो होइ देहिणो ॥५॥
( ३२७ )
अकिरियावायो
कुवं च कारयं चेव, सव्वं कुवं न विज्जई। एवं अकारो अप्पा, एवं ते उ पगम्भिया ॥६॥

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