Book Title: Samyaktva Sara Shatak
Author(s): Gyanbhushan Maharaj
Publisher: Digambar Jain Samaj
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महावीर-वाणी ( ३०५ )
सोच्चा जाणइ कल्लाणं, सोच्चा जाणइ पावगं । उभयं पि जाणइ सोच्चा, जं छेयं तं समायरे ॥५॥
( ३०६ )
जो जीवे वि न जाणइ, अजीवे वि न जाणइ । जीवाऽजीवें प्रयाणतो कहं सो नाहीइ संजमं ॥६॥
( ३०७ )
जो जीवे वि बियाणाइ, अजीवे वि वियाणइ । जीवाऽनीवे वियाणतो, सो हु नाहीइ संजमं ॥७॥
( ३०८ )
जया जीवमनीवे य, दो वि एए वियाणइ । तया गई बहुविहं, सव्वजीवाण जाणइ ॥
(३०९)
जया गई बहुविहं सबजीवाण जाणइ । तया पुण्णं च पावं च बंधं मोक्खं च जाणइ ॥९॥

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