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मोक्षमार्ग-सूत्र
१६३ ( ३०५) सुनकर ही कल्याण का मार्ग जाना जाता है। सुनकर ही पाप का मार्ग जाना जाता है। दोनो ही मार्ग सुनकर ही जाने जाते है । बुद्धिमान सावक का कर्तव्य है कि पहले श्रवण करे और फिर अपने को जो श्रेय मालूम हो, उसका आचरण करे।
जो न तो जीव (चेतनतत्त्व) को जानता है, और न अजीव (जड़तत्त्व)को ही जानता है, वह जीव अजीव के स्वरूप को न जाननेवाला साबक भला, किस तरह सयम को जान सकेगा?
( ३०७ ) जो जीव को भी जानता है और अजीव को भी जानता है, ऐसा जीव और अजीव-दोनो को भलीभांति जाननेवाला सावक ही सयम को जान सकेगा।
( ३०८ ) जव जीव और अजीव-दोनो को भलीभांति जान लेता है, तव वह सब जीवों की नानाविध गति (नरक तिर्यंच आदि) को भी जान लेता है।
( ३०६) जब वह सब जीवों की नानाविध गतियो को जान लेता है, तव पुण्य, पाप, वन्धन और मोक्ष को भी जान लेता है।