Book Title: Samyaktva Sara Shatak
Author(s): Gyanbhushan Maharaj
Publisher: Digambar Jain Samaj

View full book text
Previous | Next

Page 402
________________ १६६ महावीरवाणी ( ३१५ ) जया धुणइ कम्मरयं अवोहिकलुसं कडं । तया सब्वत्तगं नाणं दसणं चाभिगच्छइ ॥१५॥ ( ३१६ ) जया सव्वत्तगं नाणं दसणं चाभिगच्छह । तया लोगमलोगं च जिणो जाणइ फेवली ॥१६॥ ( ३१७ ) जया लोगमलोगं च जिणो जाणइ केवली । तया जोगे निरंभित्ता सेलेसि पडिवज्जइ ॥१७॥ ( ३१८ ) जया जोगे निरंभित्ता सेलेसि पडिवज्जइ । तया कम्म खवित्ताणं सिद्धि गच्छह नीरभो ॥१८॥ ( ३१६) जया कम्म खवित्ताणं सिद्धि गच्छइ नीरो। तया लोगमत्ययत्यो सिद्धो हवइ सासमो ॥१९॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425