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पण्डित-सूत्र
१२३ ( २२१ ) जो ममत्व-चुद्धि का परित्याग करता है, वह ममत्व का परित्याग करता है । वास्तव में वही मसार से सच्चा भय खानेवाला मुनि है, जिसे किसी भी प्रकार का ममत्व-भाव नहीं है।
(२२२ ) जैसे कमा आपत्ति से बचने के लिए अपने अगो को अपने भरीर में सिकोड लेता है, उसी प्रकार पडितजन भी विषयो की ओर जाती हुई अपनी इन्द्रियो को आध्यात्मिक ज्ञान से सिकोडकर रखे।
( २२३ ) जो मनुप्य प्रतिमास लाखो गायें दान में देता है, उसकी अपेक्षा कुछ भी न देनेवाले का मयमाचरण श्रेष्ठ है।
( २२४ ) सब प्रकार के ज्ञान को निमल करने से, अज्ञान और मोह के त्यागने से, तथा राग और ढेप का क्षय करने से एकान्त सुखस्वरूप मोक्ष प्राप्त होता है।
( २२५) सद्गुरु तथा अनुभवी वृद्धो की सेवा करना, मूरों के संसर्ग से दूर रहना, एकाग्र चित्त से सत् गास्त्रो का अभ्यास करना और उनके गम्भीर अर्थ का चिन्तन करना, और चित्त मे धृतिरूप अटल शान्ति प्राप्त करना, यह निश्रेयस का मार्ग है।