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: १९ : लोकतत्त्वसूत्र
( २४२ ) धर्म, अधर्म, आकाश, काल, पुद्गल और जीव-ये छ. द्रव्य है। केवलदर्शन के घr जिन भगवानो ने इन सबको लोक कहा है।
। ( २४३ ) धर्मद्रव्य का लक्षण गति है, अधर्मद्रव्य का लक्षण स्थिति है। सव पदार्थों को अवकाश देना-आकाश का लक्षण है।
(२४) काल का लक्षण वर्तना है, और उपयोग जीव का लक्षण है। जीवात्मा ज्ञान से, दर्शन से, सुख से, तथा दुख से जाना-पहचाना जाता है।
( २४५ ) अतएव ज्ञान, दर्शन, चारित्र्य, तप, वीर्य और उपयोग-ये सब जीव के लक्षण है।
( २४६ ) शब्द, अन्धकार, उजेला, प्रभा, छाया, आतप (धूप), वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श-ये सव पुद्गल के लक्षण है ।