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ब्राह्मण-सूत्र
१४९ कहते है।
( २७८ ) जो कोष से, हास्य से, लोभ से अथवा भय से-किसी भी मलिन सकल्प से असत्य नहीं बोलता, उसे हम ब्राह्मण कहते है।
( २७६ ) जो सचित्त या अचित्त कोई भी पदार्थ भले ही फिर वह थोडा हो या ज्यादा, मालिक के सहर्ष दिये विना चोरी से नहीं लेता, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं।
(२०) जो देवता, मनुष्य तथा तिर्यञ्च सम्बन्धी सभी प्रकार के मैथुन का मन, वाणी और शरीर से कभी सेवन नहीं करता, उसे हम ब्राह्मण कहते है।
(२८१ ) जिस प्रकार कमल जल में उत्पन्न होकर भी जल से लिप्त नही होता, इसी प्रकार जो ससार में रहकर भी काम-भोगो से सर्वथा अलिप्त रहता है, उसे हम ब्राह्मण कहते है।
( २८२ ) जो अलोलुप है, जो अनासक्त-जीवी है, जो अनागार (विना घरवार का) है, जो अकिंचन है, जो गृहस्थो से अलिप्त है, उसे हम ब्राह्मण कहते है।