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विनय-सूत्र
(६४) जो शिष्य अभिमान, क्रोध, मद या प्रमाद के कारण गुरु की विनय (भक्ति) नहीं करता, वह इससे अभूति अर्थात् पतन को प्राप्त होता है । जैसे बांस का फल उसके ही नाश के लिए होता है, उसी प्रकार अविनीत का ज्ञानवल भी उसीका सर्वनाश करता है।
(९५) 'अविनीत को विपत्ति प्राप्त होती है, और विनीत को सम्पत्ति' -ये दो वातें जिसने जान ली है, वही शिक्षा प्राप्त कर सकता है।