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अप्रमाद-सूत्र
। १२७ ) यह जीव पृथिवी-काय में गया और वहाँ उत्कृष्ट असख्य काल तक रहा। हे गौतम । क्षणमात्र भी प्रमाद न कर ।
(१२८ ) यह जीव जल-काय में गया और वहां उत्कृष्ट असख्य काल तक रहा। हे गौतम | क्षणमात्र भी प्रमाद न कर ।
( १२६ ) यह जीव तेजस्काय मे गया और वहाँ उत्कृष्ट असख्य काल तक रहा। हे गौतम ! क्षणमात्र भी प्रमाद न कर।
( १३०) यह जीव वायु-काय में गया और वहां उत्कृष्ट असंख्य काल तक रहा । है गौतम | क्षणमात्र भी प्रमाद न कर।
( १३१ ) यह जीव बनस्पति-काय में गया और वहां उत्कृष्ट अनन्त काल तक-जिसका बड़ी कठिनता से अन्त होता है-रहा। हे गौतम । क्षणमात्र भी प्रमाद न कर ।
( १३२ ) यह जीव द्वीन्द्रिय-काय में गया और वहाँ उत्कृष्ट सख्येय काल तक रहा। हे गौतम । क्षणमात्र भी प्रमाद न कर ।