________________
विनय-सूत्र
( ८६) जो गुरु की आज्ञा का पालन नहीं करता, जो उनके पास नही रहता, जो उनसे शत्रुता का वर्ताव रखता है, जो विवेकशून्य है, उसे अविनीत कहते है।
(९०-९२) जो वारवार क्रोध करता है, जिसका क्रोष शीघ्र ही शान्त नहीं होता, जो मित्रता रखनेवालो का भी तिरस्कार करता है, जो शास्त्र पढकर गर्व करता है, जो दूसरो के दोपो को ही उखेड़ता रहता है; जो अपने मित्रो पर भी क्रुद्ध हो जाता है, जो अपने प्यारे-से-प्यारे मित्र की भी पीट-पीछे बुराई करता है, जो मनमाना वोल उठता है-चकवादी है, जो स्नेही जनो से भी द्रोह रखता है, जो अहकारी है; जो लोभी है, जो इन्द्रियनिग्रही नहीं, जो सबको अप्रिय है, वह अविनीत कहलाता है।
(६३) शिष्य का कर्तव्य है कि जिस गुरु से धर्म-प्रवचन सीखे, उसकी निरन्तर विनय-भक्ति करे। मस्तक पर अजलि चढाकर गुरु के प्रति सम्मान प्रदर्शित करे। जिस तरह भी हो सके उसी तरह मन से, वचन से और शरीर से हमेशा गुरु की सेवा करे।