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चतुरङ्गीय-सूत्र
(६) ___ ससार में जीवो को इन चार श्रेष्ठ अङ्गो (जीवन-विकास के सावन) का प्राप्त होना बहा दुर्लभ हैमनुष्यत्व, धर्मश्रवण, श्रद्धा और सयम मे पुरुषार्य।
( ९७ ) संसार की मोह-माया में फंसी हुई मूर्ख प्रजा अनेक प्रकार के पापकर्म करके अनेक गोत्रोवाली जातियों में जन्म लेती है। सारा विश्व इन जातियो से भरा हुआ है।
(8 ) जीव कमी देवलोक में, कभी नरफलोक में, और कभी असुरलोक में जाता है। जैसे भी कर्म होते है, वही पहुंच जाता है।
(6) कभी तो वह क्षत्रिय होता है और कभी चाण्डाल, कभी वर्णसकर--बुक्कस, कभी कीड़ा, कभी पतंग, कभी कुयुमा, तो कभी चीटी होता है।