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अरात्रि भोजन-सूत्र
( ७७ ) अन्न आदि चारी ही प्रकार के आहार का रात्रि में सेवन नहीं करना चाहिए। इतना ही नहीं, दूसरे दिन के लिए भी रात्रि में खाद्य सामग्री का संग्रह करना निपिद्ध है। अत अरात्रिभोजन वास्तव में बडा दुप्फर है।
( ७८ ) हिंसा, भूठ, चोरी, मैथुन, परिग्रह और रात्रि-भोजन-जो जीव इनसे विरत (पृथक्) रहता है, वह 'अनासव' (प्रात्मा में पापकर्म के प्रविष्ट होने के द्वार प्रान्नव कहलाते है, उनसे रहित, अनासव) हो जाता है।