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अरात्रि-भोजन-सूत्र
(७३) मूर्य के उदय होने से पहले और सूर्य के अस्त हो जाने के वाद निर्ग्रन्य मुनि को सभी प्रकार के भोजन-पान आदि की मन से भी इच्या नहीं करनी चाहिए।
(७४) मनार में बहुत से अस और स्थावर प्राणी वड़े ही सूक्ष्म होते है वे रात्रि में देने नहीं जा सकते । तो रात्रि में भोजन कैसे फिया जा सकता है?
( ७५ ) जमीन पर कही पानी पडा होता है, कही वीज विखरे होते है, और कहीपर सूक्ष्म कोडे-मकोडे आदि जीव होते है। दिन में तो उन्हें देख-भालकर बचाया जा सकता है, परन्तु रात्रि मे उनको बचाकर भोजन कैसे किया जा सकता है ?
इस मांति सव दोपो को देखकर ही ज्ञातपुष ने कहा है कि निर्ग्रन्य मुनि, रात्रि में किसी भी प्रकार का भोजन न करे।