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प्रस्तावना
सन् १९३५ से सन् १९३८ ई० तक, सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेम्बली का सदस्य होने के कारण, मुझको, प्रति वर्ष, ढाई तीन महीने, माघ फाल्गुन-चैत्र में, नई दिल्ली में रहना पड़ा। दिल्ली निवासी श्री गुलाबचन्द जैन, वहाँ, कई बेर, मुझसे मिलने को आये, और किसी प्रसंग मे, श्री वेचरदासजी की चर्चा उन्होने की । सन् १९३६ में, मार्च के महीने में, गुलाबचन्द जी, किसी कार्य के वश, काशीमाये; मुझसे कहा कि श्री वेचरदास जी ने, जो अव अहमदाबाद कालिज में प्राकृत भाषा और जैन दर्शन के अध्यापक है, “महावीर-वाणी" नाम से एक अन्य का सकलन किया है, और उनकी बहुत इच्छा है कि तुम (भगवानदास) उसकी प्रस्तावना लिख दो। मैने उनको समझाने का यल किया; मेरा वयस ७२ वर्ष का; आँखें दुर्वल; सव शक्ति क्षीणः तीन चार अथ अग्रेजी, हिन्दी, संस्कृत के, जिनके कुछ अंश लिख और छप भी गये है, पूर्ण करने को पडे हुए; अन्य, सामाजिक जीवन में अनिवार्य, झम्टो की भी कमी नहीं, थोडा भी नया काम उठाना मेरे लिये नितान्त अनुचित, सर्वोपरि यह कि मैं प्राकृत भाषा और जैन साहित्य से अनभिज्ञ । पर गुलावचन्द जी ने एक नहीं माना, दिल्ली जाकर, पुन पुन मुझको लिखते