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[ १४ ] कम्मुणा भणो होड, कम्मुणा होई खत्तियो, वइसो कम्मुणा होई, सुट्टो हवइ कम्मुणा।
जैन आगम उत्तराध्ययन, अ० २५, गाथा २८-३२ कुछ लोगो को यह भ्राति होती है कि महावीर और बुद्ध ने वर्णव्यवस्था को तोड़ने का यत्न किया। ऐसा नहीं है। उन्होने तो उसको केवल सुधारने का ही यल किया है। महाभारत में पुनः पुन. स्पष्ट शब्दो में, वही बात कही है, जो महावीर ने कही है। न योनि पि सस्कारो, न श्रुतं न च सततिः,
कारणानि द्विजत्वस्य; वृत्तमेव तु कारणम् । न विशेषोऽस्ति वर्णाना, सर्व ब्राह्ममिद जगत्
ब्रह्मणा पूर्वसृष्टं हि, कर्मभिर्वर्णतां गतम् । महावीर ने और वुद्ध ने, दोनो ने, “कर्मणा वर्ण." के सिद्धान्त पर ही जोर दिया। यही सिद्धान्त, उत्तम वर्ण-व्यवस्था का मुल मंत्र है। इसके न मानने से, इसके स्थान पर “जन्मना वर्ण." के अपसिद्धान्त की स्थापना कर देने से ही, भारतीय जनता की वर्तमान घोर दुर्दशा हो रही है। __ यह खेद का स्थान है कि जैन सम्प्रदाय में भी व्यवहारतः जिनोपदिष्ट सिद्धान्त का पालन नही होता; प्रत्युत उसके विरोधी अप-सिद्धान्त का अनुसरण हो रहा है। मैं आशा करता हूँ, कि