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अहिंसा-सूत्र
(२२) सभी जीव जीना चाहते है, मरना कोई भी नहीं चाहता । इसीलिए निमुन्य (जैन मुनि), घोरप्राणि-वध कासर्वथापरित्याग करते है।
(२३) भय और बैर से निवृत्त साधक, जीवन के प्रति मोह-ममता रखनेवाले सब प्राणियो को सर्वत्र अपनी ही आत्मा के समान जानकर उनकी कभी भी हिंसा न करे।
(२४) पृथिवी, जल, अग्नि, वायु और तृण, वृक्ष, वीज आदि वनस्पतिकाय-ये सब जीव अतिसूक्ष्म है, ऊपर से एक आकार के दिखने पर भी सव का पृथक्-पृथक् अस्तित्व है।
(२५) उक्त पाँच स्थावरकाय के अतिरिक्त दूसरे त्रस प्राणी भी है। ये छहो पड्जीवनिकाय कहलाते है । जितने भी ससार में जीव है, सब इन्ही छह के अन्तर्गत है। इन के सिवाय और कोई जीव-निकाय नहीं है।
(२६ ) बुद्धिमान मनुष्य उक्त छहो जीव-निकायो का सब प्रकार की युक्तियो से सम्यग्नान प्राप्त करे और 'सभी जीव दुःख से घबराते है-ऐसा जानकर उन्हें दुख न पहुँचाये ।