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कङ्करोंको चुगा जानेलगा तो मोटे मोटे कङ्करों को मट निकाल वाहर करदिया गया। अब जो बुढ्ढा था जिसकी नजर कमजोर थी वह तो बोला कि अब तो गेहूं कंकर रहित हो गये परन्तु जवान आदमी जिसकी कि नज़र तेज थी वह बोला कि नही अब भी इन में कंकर है । बस तो इसी प्रकार स्थूल घष्टि से तो चतुर्थादि गुणस्थानों में अनन्तानुवन्ध्याति कपाय न होने से राग का अभाव होता है किन्तु सूक्ष्म दृष्टि से
अप्रत्याख्यानावरणादि कषाय होती है अतः वही रागभाव भी होता है एवं इस मन्दराग (शुभराग) को धर्म मानना या सरागवा मे धर्म मानना मिथ्या कैसे हुवा सही ही तो रहा। हां वह धर्म पर्याप्त न होकर अपर्याप्त होता है अतः सर्वथा अवन्ध न होकर प्रशस्तवन्थविधायक हुवा करता है । इस बातको बताने के लिये ही इसे व्यवहार धर्म कहाजाता है । जो कि निश्चय धर्म का कारण होता है । ऐसा न मान कर राग को ही धर्म मानलेना सो अवश्य मिथ्यात्व है क्यों कि जो राग को धर्म मानेगा वह तो राग की वृद्धि करने में यत्न करेगा इस प्रकार से वह अपना बिगाड़ कर जावेगा। परन्तु तीब्रराग की अपेक्षा से मन्दराग को धर्म मानने में यह बात नही है वहां तो यह दृष्टि होती है कि तीन के स्थान पर मन्दराग जब धर्म है तो अतिमन्दराग और भी अधिक धर्म हुवा तथा राग का बिलकुल न होना सो पूर्णधर्म हुवा । एवं तीव्रराग की अपेक्षा से मन्दराग को धर्म माननेवाला धीरे धीरे अपने राग