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बत्तचित्त रहते है और राष्ट्र प्रेम में रंगे हुए है। 'महावीर-वाणी की रामकहानी सुनते ही उन्होने सत्त्वर भाई शान्तिलाल को उचित पारिश्रमिक-पारितोषिक भेंट करके उसके संपादन के लिए मुझे उत्साहित किया। ___ भाई मानमलजी की इच्छा थी कि महावीर वाणी का अधिक से अधिक प्रचार हो, अतः उनके परामर्श से इसे सस्ता-साहित्य मंडल' (नई दिल्ली) द्वारा प्रकाशित कराने का निश्चय किया गया। 'मंडल के संचालक मंडल से इसके लिए शीघ्र ही स्वीकृति प्राप्त हो गयी और उसीका फल है कि यह अन्य पाठकों के सामने है।
भाई मानमलजी ने सेवा-भावना से प्रेरित होकर तथा अपने काका की स्मृति में प्रायोजित 'गोलेच्छाग्रन्थमाला' के अन्तर्गत निकालने के पूर्व निश्चय का परित्याग करके यह ग्रन्थ प्रकाशनार्थ 'सस्ता-साहित्य-मंडल' को दिया है। अतः सबसे अधिक धन्यवाद के पात्र है। 'सस्ता-साहित्य-मंडल के संचालक का भी मै विशेष ऋणी हूँ। ___ मूल पाठ को ठीक-ठीक संशोधन तथा संपादन का भार भाई मानमलजी का सौंपा हुअा मैने उठाया है और दिल्ली निवासी भाई गुलाबचन्द जैन के प्रबल अनुरोध से भारत प्रसिद्ध, समन्वयदर्शी । विद्वर डा० भगवानदास जी ने इसकी प्रस्तावना लिखने की कृपा की है। अतः हम उनके प्रत्यन्त कृतज्ञ है।