________________
( १५२ )
शुद्ध होता है, ज्ञान चेतना मय होता है,सो ठीक हो है । परन्तु एक सम्मगप्टि शब्द को लेकर उसी बात को सरागसम्यगदृष्टि के अन्दर भी घटित करना ठीक नहीं होता क्योंकि - देवायुषोवन्धनमप्रमत्त-गुणस्थलान्तक्रियतेजगतः । देवेभवेतस्यसतोमनुष्या-युपोऽपिवन्धःमृतरामनुस्यात् ७३
अर्थात् सम्यग्दर्शन होजाने पर भी यथासम्भव शानावरणादि कर्मों का वन्ध तो अव्रतसम्यग्दृष्ट्यादि जीवों के भी होता ही है साथमें सातवेगुरणस्थान तक तो देवायुःकर्म का भी वन्ध होता है तथा देव होजाने पर उसी सम्यग्दृष्टि जीव के ममुष्यायुःकर्म का वन्ध भी होता है। ताकि वह भी मनुष्य होकर,मिथ्याष्टियों की सी मूलभरी चेप्टा किया करता है जैसे कि रामचन्द्र जी लक्ष्मण के मुरदा शरीर को भी छः महीनों तक लिये हुये घूमते रहे । भरत जी ने आवेश में आकर बाहुबलिपर चक्र चलादिया. राजा श्रेणिक ने आत्मघात कर लिया इत्यादि फिर भी उनके ज्ञानचेतना जाग्रत ही कही जावे.यह कैसे हो सकता है इस पर शंका• कर्मान्यदन्यत्र न कार्यकारि कि वृत्तमोहोऽस्तुशेक्लिारिः। 'इत्यवचश्चेन्निगदाम्यतोऽहंज्ञानेसपात्याय न दृप्टिमोहः ।।७।।
___ अर्थात् यह सब खेल तो उन उन सम्यग्दृष्टियो के जो 'चारित्र मोह विद्यमान था उसके उदय से होगया ऐसा कहना चाहिये । चारित्र मोह जुदी चीन है औरसम्यक्त्व उससे जुड़ी