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लगती है, थकान क्यों होती है ताकि मुझे बार बार कष्ट उठाना पड़ता है यह भी एक प्रकार का रोग ही है, तो क्या इसके मिटने का भी कोई उपाय है ? अगर है तो मैं वही करू इत्यादि कर्तव्य पर विचार आने का नाम कर्म चेतना है जो कि संज्ञिपन के होने पर ही हो सकता है । और संज्ञिपन की प्राप्ति कर्मों के क्षयोपशम से होती है । अतः इस प्रकार के विशेष क्षयोपशम का होना सो एक लब्धि है जिसके कि होने से इस आत्मा को अपने हित की तरफ दृष्टि हो ले सकती है ताकि फिर वहगत्वागुरोरन्तिकमेतदाज्ञा, लब्धामयेयंमहतोऽपिभाग्यात् । सुधामिवेत्थंसपिपासुरस्तु, सम्यक्त्वहेतोः समुदायवस्तु ॥ २३
अर्थात्-पियासा आदमी कुवे की भांति, किसी सन्मार्ग प्रदर्शक गुरु की खोज करता है एवं उसके पास पहुंचता है
और उसकी जो कुछ देशना होती है उसको बड़े ध्यान से सुनता है विचारता है कि आज मेरा बड़ा ही भाग्योदय है ताकि मुझे इन सद्गुरु की वाणी सुनने को मिली। जैसे कि पियासे आदमी को अमृत मिलजावे तो वह उसे पीता पीता नही अधाता वैसे ही यह भी गुरुमहाराज के सदुपदेश को रुचि के साथ ग्रहण किया करता है । इसका नाम देशनालब्धि है जो कि सम्यक्त्वोत्पत्ति के कारणों में से एक परमावश्यक वस्तु है। अन्धकार को हटाने के लिए सूर्य की प्रभा के समान है।