________________
( ७४ )
और क्षयोपशम के भेद से तीन तरह का होता है अतः सम्यक्त्व के भी औपशमिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक इस प्रकार तीन ही भेद हो जाते हैं । याद रहे कि मोहके दर्शनमोह
और चारित्र मोह ऐसे दो भेद होते हैं सो दर्शनमोह के साथ ही साथ चारित्रमोह का भी प्रभाव हो जाता हो ऐसी बात नहीं किन्तु दर्शनमोह के अभाव मे चारित्रमोह बिलकुल अछूता ही बना रह जाता हो, वह अपनी पूरी ताकत बनाये रेखता हो
और सम्यग्यदर्शन हो जावे सो बात भी नहीं है । किन्तु दर्शनमोह के साथ चारित्र मोह की भी एक चतुर्थाशलि हो लेती है तभी सम्यग्दर्शन होता है अतः सम्यग्दर्शन को भी सम्यक्त्व शब्द से कह दिया जाता है वरना तो सम्यग्क्त्व नाम तो मोह के प्रभाव का है । अस्तु । दर्शन मोह की तीन प्रकृतियां और चारित्र मोह की सुरू की अनन्तानुवन्धि नाम वाली चार प्रकतियां इन सात प्रकृतियों का उपशम होने पर तो औपशमिक सम्यग्दर्शन होता है जिसको कि प्रथमोपशमिक सम्यग्दर्शन भी कहते हैं क्योंकि एक औपशमिक सम्यग्दर्शन वह भी होता है जिसको कि उपशम श्रेणि के सम्मुख होने वाला बायोपशामिक सम्यग्दृष्टि जीव प्राप्त करता है। जो कि अपनी सम्यक प्रकृतिका उपशम और अनन्ता नुवन्धि चतुष्टय का विसंयोजन करके कर पाता है उसको द्वितीयौपशमिक सम्यग्दर्शन कहा जाता है। उन्हीं सात प्रकृतियोंका क्षय होनेसे,उनमें होने वाले कर्मत्व का सर्वथा अभाव हो जाने से जो हो वह क्षायिक सम्यग्दर्शन