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तत्रायःसाध्यरूपःस्याद् द्वितीयस्तस्य साधनं ।।।। आचार्य महाराज कहरहे है कि जिसका तत्वार्थसूत्रम वर्णन किया गया हुवा है और जिसका पुनरुद्धार इस तत्वार्थसार मे किया गया है वह सम्यग्दर्शन, सम्ररज्ञान और सम्यक्चारित्ररूप मोक्षमार्ग (धर्म) जो है सो निश्चय और व्यवहार के भेद से दो प्रकार का होता है । निश्चय मोक्षमार्ग तो साध्य यानी प्राप्त करने के योग्य और व्यवहार मोक्षमार्ग उसका साधन यानी उपाय है । इन्ही आचार्य श्री ने इस तत्वार्थसार के प्रारम्भ मे सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र का लक्षण भी इस प्रकार लिखा है
श्रद्धानं दर्शनं सम्यग् ज्ञानं स्याद्ववोधनं । उपेक्षणंतु चारित्रं तत्वार्थानां सुनिश्चित ॥४॥
अर्थात् - तत्वार्थ का ठीक ठीक श्रद्धान. होना सो सम्यग्दर्शन, तत्वार्थो का जानना सो सम्यग्जान और तत्वार्थो के प्रति उपेक्षाभाव का होता सो मम्यक् चारित्र है । मतलब
आचार्य श्री बतला रहे हैं कि तत्वार्थ श्रद्धान यह लक्षण न तो सिर्फ व्यवहार सम्यग्दर्शन का ही लक्षण है और न वह अकेले निधय सम्यग्दर्शन का ही किन्तु यह लक्षण निश्चय और व्यवहार दोनों प्रकार के सम्यग्दर्शन का व्यापक लक्षण है। उसी प्रकार तत्वार्थो का ठीक जानना दोनों प्रकार के सम्यग्ज्ञान का और उपेक्षा करना दोनों तरह के सम्यक् चारित्र का । अव इस पर यह जानने की उत्कण्ठा होजाती है नि तो फिर निश्चय