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शङ्का - हमारे शास्त्री मे बतलाया है कि स्वयम्भूरमणद्वीप मे होनेवाले तिर्यख भी पश्चम गुण स्थानी हो जाते है सो वहां गुरुसमागम कहां है वहां सम्यग्दर्शन कैसे हुआ ? उत्तर - एक बार गुरुसमागम होनेसे जिसे सम्यग्दर्शन होकर छूट गया ऐसे सादि मिध्यादृष्टि के लिये गुरु समागम का अनिवार्य नियम नहीं है एक बात तो यह है । और दूसरी बात यह कि मनुष्य तो नहीं किन्तु सम्यग्दृष्टि देव तो वहां जासकते हैं सो वे जाकर उन्हें सन्मार्ग का उपदेश देकर सम्यग्दर्शन प्रहरण करा दे सकते हैं । अन्यथा तो फिर उन्हे सम्यग्दर्शन की भांति ही श्रावक के बारह व्रतों का भी पता क्या और कैसे हो सकता है। अगर कहाजावे कि जातिस्मरण से पूर्व जन्म याद आकर हो सकता है तो फिर ठीक ही है उन्हे उनके पूर्वजन्म के गुरु का उपदेश ही तो कारण हुवा | शङ्का - यदि ऐसा माने की गुरु आये इस लिये श्रद्धा हुई तो
गुरु कर्ता और शिष्य को श्रद्धा हुई इस लिये वह उनका कार्य हुवा इस प्रकार दो द्रव्यों के कर्ता कर्मपना
आजावेगा ( वस्तुविज्ञानसार पृ० ३६ पं० २१-२२-२३) उत्तर- दो द्रव्यों के कर्ता कर्मपना आजायेगा इसमें क्या
हानि होगी, हमारे आचार्योने तो निमित्तिनैमित्तिक रूपमें एक
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को दूसरे द्रव्य का कर्ता और उसको उसका कर्म तो माना ही
है देखो श्री कुन्दकुन्द ने ही समयमार जी में लिखा है किअणाणमवोभाव अराणियो कुरणदितेय कम्माणिइति ।