Book Title: Pushkarmuni Abhinandan Granth
Author(s): Devendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
Publisher: Rajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चन
७७
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सद्गुणों के संगम-स्थल
डा० ए० डी० बतरा, एम० ए०, पी-एच०डी० डी० वाय० पी०
(पूना विश्वविद्यालय)
परम श्रद्धेय उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी महाराज तेजस्विता आनी चाहिए वह नहीं आ पाती। एतदर्थ के विषय में मेरे जैसे व्यक्ति का लिखना सूर्य की व्याख्या ही भगवान महावीर ने भी कहा-"बहुयं माय आलवे" करने के समान है। सूर्य को बताने के लिए दूसरे प्रकाश बहुत मत बोलो। की आवश्यकता नहीं होती, वह स्वयं प्रकाशित है। मैं तीसरी विशेषता है कि वे अध्ययनशील हैं। सोचता हूँ उनके विराट व्यक्तित्व के सम्बन्ध में मैं क्या उन्होंने जैन, बौद्ध और वैदिक वाङ्मय को पढ़ा है। लिखू ? क्योंकि अनन्त श्रद्धा व असीम भाव, ससीम शब्दों ब्राह्मणकुल में जन्म लेने के कारण वैदिक वाङमय के में कैसे व्यक्त किये जा सकते हैं ? किसी भी विशिष्ट प्रति आपकी सहज अभिरुचि रही। वेद, उपनिषद, गीता, व्यक्ति के सम्बन्ध में लिखते समय यही एक समस्या रहती और महाभारत आदि का आपने पारायण किया है । योग है क्योंकि जितना लिखा जाता है उससे कई गुना अधिक के ग्रन्थों को भी पढ़ा है। और जैन श्रमण होने के नाते उनका व्यक्तित्व बढ़ा-चढ़ा होता है। उन विराट भावों को जैन साहित्य के पठन-पाठन के प्रति आपकी अपनी जिम्मेकितना भी कुशल शब्दशास्त्री क्यों न हो, व्यक्त नहीं कर दारी रही है और उस जिम्मेदारी को आप सहज रूप से सकता।
निभाते रहे हैं । आपके साहित्य में आपका गम्भीर अध्ययन ___ सन् १९७५ में आपश्री का अपने शिष्यों सहित पूना स्पष्ट रूप से झलक रहा है। में वर्षावास था। विदुषी महासती उज्ज्वलकुमारी जी ने अध्ययन के साथ ही आपका चिन्तन भी ऊर्वर है। मुझे अहमदनगर में बताया कि इस वर्ष महान् विचारक प्रत्येक वस्तु पर गहराई से अनुचिन्तन करना आपको प्रिय सन्त गण पूना में हैं । मैं देवेन्द्र मुनिजी से मिला । विभिन्न रहा है। आप चिन्ता से मुक्त होने के लिए चिन्तन को विषयों पर उनसे वार्तालाप हुआ। उन्हीं के माध्यम से मैं आवश्यक मानते हैं। वार्तालाप व प्रवचन के प्रसंग में उपाध्याय श्री के निकट सम्पर्क में आया । वे आध्यात्मिक आपके निर्मल चिन्तन के सहज दर्शन होते हैं। साधना करते हैं यह जानकर मेरा हृदय अत्यन्त आल्हादित हुआ। मैं ऐसे व्यक्ति की खोज कर रहा था जिनके नेतृत्व आप प्रयोगप्रिय भी हैं। साधना के अनेक प्रयोग में रहकर मैं अपने आध्यात्मिक जीवन को और अधिक भी आपने किये हैं। इस प्रकार एक ही व्यक्ति में एक नहीं; विकसित करने की भावना रखता था और उसी भावना अपितु अनेक गुणों का प्रगटीकरण हुआ है । एक व्यक्ति में के कारण घोड़नदी, रायचूर, कोप्पल, हुबली, भद्रावती और अनेक गुण होना आश्चर्य है, पर यह उतना ही सत्य है बंगलोर इत्यादि स्थानों पर मैं उनके सन्निकट रहा । मैने जितना सर्चलाइट का प्रकाश । यह अनुभव किया कि गुरुजी सरल स्वभावी हैं, उनके मैंने यह भी देखा कि पनघट के कुए की तरह लोग जीवन में माया और दंभ नहीं है। उनका जीवन सरोवर उन्हें सदा घेरे रहते हैं । वे जंगल में पहुँचते हैं, वहाँ पर सरलता के सुमधुर सलिल से भरा हुआ है और वह हजारों भी भक्तों की भीड़ मधुमक्खियों के छत्ते की तरह जमा हजारों प्यासे कण्ठों का संगम-स्थल है।
हो जाती है। भीड़ में रहने पर भी वे भीड़ से अलगदूसरी विशेषता वे मितभाषी हैं। अधिक बोलना उन्हें थलग रहकर आध्यात्मिक साधना करना चाहते हैं । उनके पसन्द नहीं है। उनका मानना है "कम बोलो, अधिक काम जीवन की महत्त्वपूर्ण विशेषता यह भी है कि वे शान्त और करो।" जो व्यक्ति अधिक बोलता है उसके जीवन में जो स्थिरचित्त हैं। अशांति उनके जीवन में नहीं है । उनका
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