Book Title: Pushkarmuni Abhinandan Granth
Author(s): Devendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
Publisher: Rajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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C
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श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ
(२६) श्री अमर जैन धर्म स्थानक
(३१)
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(३३) (३४)
(३६) श्री जैन धर्म स्थानक
सायरा डबोक
वास मादडा कोल्यारी वागपुरा
झाडोल बेलवण्डी (महा.) पालघर (महा.) भीम (राज.)
वीरर केलवारोड
सफाला वाणगाँव
भझट खाण्डप भारण्डा गदक
(३६) (४०)
(४१)
(४२) (४३)
श्री पष्कर-वाणी -o-----------------------------------------
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संसार में कुछ मनुष्य कौवे के समान होते हैं और कुछ हंस के समान । चाहे जितने अच्छे पदार्थ सामने रखे हों, किन्तु कौवा उनमें से निकृष्ट पदार्थ पर ही चोंच मारेगा । यद्यपि कौवा पक्षियों में चतुर या अति सयाना कहलाता है, फिर भी उसका स्वभाव ही ऐसा होता है कि भली वस्तु को छोड़कर बुरी वस्तु लेता है।
बहुत से चतुर और सयाने कहलाने वाले मनुष्य भी स्वभावदोष अथवा आदत की लाचारी के कारण बुराई को ही ग्रहण करते हैं, भलाई पर ध्यान नहीं देते।
कभी-कभी हमारा मन भी अधिक चतुर बनकर हमें धोखा दे जाता है। बुराई व निकृष्टता की ओर भागने लगता है और श्रेष्ठता से मुंह मोड़कर चलता है।
हंस के सामने पानी और दूध मिलाकर रखा तो भी वह अपनी चोंच डालकर पानी को अलग कर देता है और दूध पी लेता है । पानी में से भी वह घोंघे नहीं, बल्कि मोती चुगता है । कुछ मनुष्यों का स्वभाव भी ऐसा होता है, बुराई को छोड़कर भलाई का ही ग्रहण करेंगे। उनका अन्तर-विवेक अध्यात्म विद्यारूप मोती ही चुगेगा । भौतिक-वासना रूप घोंघे पर चोंच नहीं मारेगा।
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