Book Title: Pushkarmuni Abhinandan Granth
Author(s): Devendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
Publisher: Rajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti

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Page 1175
________________ () () Jain Education International २७२ श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ : नवम खण्ड परिशिष्ट २ संत व सती परिवार [ प्रस्तुत ग्रन्थ के द्वितीय खण्ड (पृष्ठ १८४) में सन्त व सती परिवार शीर्षक लेख लिखने के पश्चात् जिन सन्त व सतियों की दीक्षाएँ हुई उनका संक्षेप में परिचय यहाँ प्रस्तुत है । - सम्पादक ] श्री भगवती मुनि आपका जन्म वि. सं. २०१७ ज्येष्ठ कृष्णा ग्यारस के दिन सोजत के सन्निकट सरवाड ग्राम में हुआ । पिता का नाम मंगलसिंह जी और मां का नाम कानकुंवर बाई है। आपने सं. २०३५ आश्विन शुक्ला सप्तमी के दिन जोधपुर में दीक्षा ग्रहण की। आपकी अध्ययन के प्रति सहज रुचि है । बाल ब्रह्मचारिणी चन्दनप्रभाजी आपके पिताश्री का नाम लाभुभाई मेहता और मातेश्वरी का नाम आपका गृहस्थाश्रम में नाम नयना बहिन था। सं. २०३४ में महासती शिष्यत्व को ग्रहण किया। आपकी दीक्षा अहमदाबाद के गान्धीनगर आपका जन्म अहमदाबाद में हुआ। कंचन बहिन है। पति-पत्नी दोनों धर्मपरायण हैं। श्री उमरावकुंवरजी की मुशिष्या सत्यप्रभाजी के में हुई। आप मधुर प्रकृति की सेवाभावी तथा अध्ययन- प्रेमी सती हैं । बाल ब्रह्मचारिणी सुमतिप्रभाजी आपका जन्म राजस्थान के गढ़ सिवाना में हुआ। आपके पिताश्री का नाम मिश्रीमलजी छाजेड़ और माताजी का नाम उकीबाई है। दोनों ही धर्मनिष्ठ हैं । संसारावस्था में आपका नाम सुमित्रा बहिन था । आपने गढ़ सिवाना में सं. २०३५ ज्येष्ठ शुक्ला तीज को भागवती दीक्षा ग्रहण की और महासती श्री उमरावकुंवरजी की सुशिष्या सत्यप्रभाजी की शिष्या बनीं। आप स्वभाव से सौम्य, सेवाभावी व अध्ययनशीला हैं । बाल ब्रह्मचारिणी देवेन्द्रप्रभाजी आपका जन्म गढ़ जालोर में हुआ । आपके पिताश्री का नाम मूलचन्दजी और माताजी का नाम उगमबाई है । दोनों में धार्मिक भावना है। सं. २०३४ के फाल्गुन शुक्ला ६ को परम विदुषी महासती श्री शीलकुंवरजी महाराज के पास आती दीक्षा ग्रहण की और विदुषी महासतीजी की सुशिष्या चन्दनबालाजी के शिष्यत्व को ग्रहण किया। आप सेवाभावी और अध्ययनशीला हैं । बाल ब्रह्मचारिणी विनयप्रभाजी आपका जन्म जयपुर में हुआ । आपके पिताजी गान्धी हैं। माँ का नाम कमलाबाई है। आपने सं. २०३५ में देहली में परम विदुषी महासती कुसुमवतीजी की हिच्या चारियप्रभाजी के शिष्यत्व को ग्रहण किया। आप सेवाभावी और अध्ययनशीला सती हैं । For Private & Personal Use Only *** MUSKAR www.jainelibrary.org

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