Book Title: Pushkarmuni Abhinandan Granth
Author(s): Devendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
Publisher: Rajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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जैन भूगोल पर एक दृष्टिपात
६३५
सूरादो दिणरत्ती अट्ठारस बारसा मुहत्ताणं ।
अन्मंन्तरम्हि एवं विवरीयं बाहिरम्हि हवे ॥३७६॥ अर्थात् सूर्य अभ्यंतर परिधि अर्थात कर्कवृत्त में श्रमण करता है, तब दिन अठारह मुहूर्त का और रात्रि बारह मुहूर्त की होती है। सूर्य बाह्य परिधि अर्थात मकरवृत्त में भ्रमण करता है, तब अठारह मुहूर्त की रात्रि और बारह मुहूर्त का दिन होता है । भारतीय पंचांगों के अनुसार सबसे बड़ा दिन १६४ मुहूर्त का और सबसे छोटा दिन १३१ मुहूर्त का होता है।
(११) इस तरह यह निष्कर्ष निकलता है कि जैन भूगोल का मेल भारतीय पंचांगों से कतई नहीं बैठता है । जैन भूगोल में मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि ग्रहों का भ्रमण कैसे होता है, यह नहीं बताया है । इसलिए जैन भूगोल से पंचांग नहीं बन सकता है । आधुनिक पंचांगकर्ताओं ने हर्षल, नेपच्यून तथा प्लूटो ग्रहों को भी शामिल कर अपना ज्योतिष-शास्त्र पूर्ण कर लिया है । भारत की जनता इन पंचांगों पर विश्वास करती है और अपने सांस्कृतिक कार्यक्रम भी इन्हीं गणना के आधार पर होते हैं धार्मिक कार्यक्रम भी इन्हीं पंचांगों के तिथि अनुसार होते हैं ।
(१२) अन्त में निवेदन है कि जैन समाज एक संशोधन कमेटी बनावें, जिनमें करणानुयोगी शास्त्री हों, वैज्ञानिक हों, ज्योतिषी हों और गणितज्ञ भी हों। वे उपरोक्त प्रकरणों की सूक्ष्मता से जांच कर अपना निर्णय देवें कि सत्य क्या है और किसे मानना चाहिए।
(१३) कलकत्ता और बम्बई में प्लानेटेरियमों द्वारा जनता को आकाश के ग्रह-नक्षत्र-तारों की जानकारी प्रतिदिन अनेक बार दी जाती है । इनसे विषय को समझने में सहायता ली जा सकती है।
(१४) भारत के दो उपग्रह 'आर्यभट्ट" और "फखरुद्दीन अहमद" पृथ्वी के चक्कर लगाते रहते हैं, इनसे मी प्रेरणा मिल सकती है।
उपरोक्त लेख का मुख्य आधार श्रीमन्नेमिचन्द्र सिद्धांत चक्रवर्ती विरचित तथा श्रीमन्माधवचन्द्र विद्यदेव कृत व्याख्या सहित “त्रिलोकसार" ग्रन्थ है। यह ग्रन्थ ७० लाडमल जैन, अधिष्ठाता, शान्तिवीर गुरुकुल, श्री महावीरजी (राजस्थान) द्वारा बीर निर्वाण सं० २५०१ में प्रकाशित हुआ है । सम्बन्धित गाथाएँ निम्न प्रकार हैंगाथा नं. पृष्ठ नं.
विषय २५४ जंबूद्वीप का व्यास ३११
जंबूदीप की परिधि व क्षेत्रफल इनकी जगह आधुनिक फार्मूला का उपयोग किया है यथा(१) त्रिज्या=व्यास:२ (२) परिधि=IX व्यास (m=३.१४१६) (३) क्षेत्रफल=rxत्रिज्यारे (४) घनफल (गोल वस्तु का) =
(५) क्षेत्रफल (गोल वस्तु का)=xx xत्रिज्यारे
५०६ भरतक्षेत्र का विष्कंभ ५२६ योजन ७७१
६१०) ६११
भरतक्षेत्र की जीवा १४४७१११ योजन ६१७
लवणसमुद्र का विस्तार २५५१
वलयव्यास सूचीव्यास ३१०
२५६ ५१० मेरुगिरि का उदय, भू व्यास व मुख व्यास
स्वर्ग व मोक्ष का स्थान
२५८
६०४
२५४
rr
४७०
Yos
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