Book Title: Pushkarmuni Abhinandan Granth
Author(s): Devendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
Publisher: Rajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ : अष्टम खण्ड
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आगम साहित्य में जहाँ पर स्त्रियाँ बैठी हों उस स्थान पर मुनि को और जहाँ पर पुरुष बैठे हों उस स्थान पर साध्वी को एक अन्तर्महुर्त तक नहीं बैठना चाहिए, जो उल्लेख है वह प्रस्तुत सूत्र के प्रथम कारण को लेकर ही है। इन पाँचों कारणों में कृत्रिम गर्भाधान का उल्लेख किया गया है। किसी विशिष्ट प्रणाली द्वारा शुक्र पुद्गलों का योनि में प्रवेश होने पर गर्भ की स्थिति बनती है जिसे आधुनिक वैज्ञानिकों ने भी सिद्ध कर दिया है।
सुश्रुत संहिता में लिखा है कि जिस समय अत्यन्त कामातुर हुई दो महिलाएँ परस्पर संयोग करती हैं । उस समय परस्पर एक दूसरे की योनि में रजः प्रवेश करता है तब अस्थिरहित गर्भ समुत्पन्न होता है । जब ऋतुस्नान की हुई महिला स्वप्न में मैथुन क्रिया करती है तब वायु आर्तव को लेकर गर्भाशय में गर्भ उत्पन्न होता है और वह गर्भ प्रति मास बढ़ता रहता है तथा पैतृक गुण (हड्डी, मज्जा, केश, नख आदि) रहित मांस पिण्ड उत्पन्न होता है।
तन्दुल वैचारिक प्रकरण में गर्भ के सम्बन्ध में विस्तार से निरूपण किया गया है और कहा गया है जब स्त्री के ओज का संयोग होता है तब केवल आकाररहित मांसपिंड उत्पन्न होता है। स्थानांग के चौथे ठाणे में भी यह बात आयी है।
आचार्यश्री ने जब प्रमाण देकर यह सिद्ध किया कि बिना पुरुष के सहवास के भी रजोवती नारी कुछ कारणों से गर्भ धारण कर सकती है। बादशाह की पुत्री ने जो गर्भ धारण किया है, वह बिना पुरुष के संयोग के किया है ऐसा मेरा आत्मविश्वास कहता है। तुम बादशाह से कहकर उसके प्राण बचाने का प्रयास करो। यह सुनकर दीवान जी को अत्यधिक आश्चर्य हुआ। उनका मन-मयूर नाच उठा कि अब मैं बादशाह को समझाकर कन्या के प्राण बचा सकुंगा । और एक निरपराध कन्या के प्राणों की सुरक्षा हो सकेगी। उन्होंने आचार्यप्रवर को नमस्कार किया और मंगलिक श्रवण कर वे बादशाह बहादुरशाह के पास पहुंचे। उन्होंने बादशाह से निवेदन किया-हुजूर, कन्या कभीकभी बिना पुरुष संयोग के भी गर्भ धारण कर लेती है और आपकी सुपुत्री ने जो गर्भ धारण कर लिया है वह इसी प्रकार का है, ऐसा मुझे एक अध्यात्मयोगी संत ने अपने आत्मज्ञान से बताया है। और उसकी परीक्षा यही है--जब बच्चा होगा तब उसके बाल नाखून हड्डी आदि पैतृक अंग नहीं होंगे और पानी के बुलबुले की तरह कुछ ही क्षणों में वह नष्ट हो जायगा । अत: उस अध्यात्मयोगी की बात को स्वीकार कर उस समय तक जब तक कि बच्चा न हो जाय तब तक उसे न मारा जाय । दीवान खींवसीजी की अद्भुत बात को सुनकर बादशाह आश्चर्यचकित हो गया-अरे ! यह नयी बात तो आज मैंने सर्वप्रथम सुनी है। उस फकीर के कथन की सत्यता जानने के लिए हम तब तक उस बाला को नहीं मरवाएँगे जब तक उसका बच्चा पैदा नहीं हो जाता है।
बादशाह ने कन्या के चारों तरफ कड़क पहरा लगवा दिया ताकि वह कहीं भागकर न चली जाय । कुछ समय के पश्चात् बालिका के प्रसव हुआ। बादशाह और दीवान खींवसी उसे देखने के लिए पहुँचे । जैसा आचार्य प्रवर अमरसिंहजी महाराज ने कहा था वैसा ही पानी के बुलबुले की तरह पिण्ड को देखकर बादशाह विस्मय विमुग्ध हो गया। बादशाह और दीवान के देखते ही वह बुलबुला नष्ट हो गया । बादशाह ने दीवान की पीठ थपथपाते हुए कहा--अरे, बता ऐसा कौन योगी है, औलिया है जो इस प्रकार की बात बताता है ? लगता है वह खुदा का सच्चा बन्दा है।
दीवानजी ने नम्रता के साथ निवेदन किया कि देहली में ही वर्षावास हेतु विराजे हुए ज्योतिर्धर जैनाचार्य पूज्य श्री अमरसिंहजी महाराज हैं जो बहुत ही प्रभावशाली हैं और महान योगी हैं। उन्होंने ही मुझे यह बात बतायी थी। आप चाहें तो उनके पास चल सकते हैं। बादशाह अपने सामन्तों के साथ आचार्यश्री के दर्शनार्थ पहुंचा। आचार्य प्रवर ने अहिंसा का महत्त्वपूर्ण विश्लेषण करते हुए कहा-जैनधर्म में अहिंसा का महत्त्वपूर्ण स्थान है। वहाँ पर किसी भी प्राणी की हिंसा करना निषेध किया गया है। वैदिक और बौद्धधर्म में भी अहिंसा का महत्त्व प्रतिपादित किया गया है। इस्लामधर्म में भी अहिंसा का गहरा महत्त्व है । इस धर्म में ईश्वर में विश्वास रखने धर्म पन्थ प्रवर्तकों के विचारों पर आस्था रखने, गरीब और कमजोरों पर दयाभाव दिखाने की शिक्षा प्रदान की गई है। इस धर्म में गाली (abuse), क्रोध (anger), लोभ (avarice), चुगली खाना (back biting); खून-खराबी (blood-shedding), रिश्वत लेना (bribery); झुठा अभियोग (Calumny), बेईमानी (dishonesty), मदिरापान (drinking), ईर्ष्या (envy), चापलूसी (flattery), लालच (greed), पाखण्ड (bypocrisy), असत्य (lying), कृपणता (miserliness), अभिमान (pride), कलङ्क (slandering), आत्महत्या (suicide), अधिक ब्याज लेना (usury), हिंसा (violence), उच्छखलता (Wickedness), युद्ध (warfare), हानिप्रद कर्म (wrongdoings), आदि को हमेशा ही त्याज्य समझा है
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