Book Title: Pushkarmuni Abhinandan Granth
Author(s): Devendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
Publisher: Rajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन प्रन्थ : अष्टम खण्ड
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महासती फूलकुंवरजी-आपका जन्म उदयपुर राज्य के दुलावतों के गुढ़े में वि० सं० १९२१ में हुआ। आपके पिता का नाम भगवानचन्दजी और माता का नाम चुन्नीबाई था। लघुवय में आपका पाणिग्रहण तीरपाल में हुआ। किन्तु कुछ समय के पश्चात् पति का देहान्त हो जाने से महासती छगनकुँवरजी के उपदेश को सुनकर विरक्ति हुई और १७ वर्ष की उम्र में आपने प्रव्रज्या ग्रहण की। आपकी बुद्धि बहुत ही तीक्ष्ण थी। आपने अनेकों शास्त्र कंठस्थ किये । आपकी प्रवचन शैली भी अत्यन्त मधुर थी। आपके प्रवचन से प्रभावित होकर निम्न शिष्याएँ बनीं-(१) महासती माणककुंवरजी, (२) महासती धूलकुंवरजी, (३) महासती आनन्दकुंवरजी, (४) महासती लाभकुंवरजी, (५) महासती सोहनकुंवरजी, (६) महासती प्रेमकुँवरजी और (७) महासती मोहनकुंवरजी। आपने पचास वर्ष तक संयम की उत्कृष्ट साधना की। वि० सं० १९८६ में आपको ऐसा प्रतीत होने लगा कि मेरा शरीर लम्बे समय तक नहीं रहेगा। आपने अपनी शिष्याओं को कहा कि मुझे अब संथारा करना है। किन्तु शिष्याओं ने निवेदन किया कि अभी आप पूर्ण स्वस्थ हैं, ऐसी स्थिति में संथारा करना उचित नहीं है। उस समय आपने शिष्याओं के मन को दुःखाना उचित नहीं समझा । आपने अपने मन से ही फाल्गुण शुक्ला बारस के दिन संथारा कर लिया। दूसरे दिन जब साध्वियाँ भिक्षा के लिए जाने लगीं, तब उन्होंने आपसे निवेदन किया कि हम आपके लिए भिक्षा में क्या लावें तब आपने कहा कि मुझे आहार नहीं करना है। तीन दिन तक यही क्रम चला चौथे दिन साध्वियों के आग्रह पर आपने स्पष्ट किया कि मैंने संथारा कर लिया है । चैत्र बदी अष्टमी को बारह दिन का संथारा पूर्ण कर आप स्वर्ग पधारी ।
महासती माणककुंवरजी-आपका जन्म उदयपुर राज्य के कानोड में वि० सं० १६१० में हुआ। आपकी प्रकृति सरल, सरस थी। सेवा की भावना अत्यधिक थी। ७५ वर्ष की उम्र में वि० सं० १९८५ के आसोज महीने में आपका उदयपुर में स्वर्गवास हुआ।
महासती धूल कुंवरजी-आपका जन्म उदयपुर राज्य के मादडा ग्राम में वि० सं० १९३५ माघ बदी अमावस्या को हुआ। आपके पिताश्री पन्नालाल जी चौधरी और माता का नाम नाथीबाई था। माता-पिता ने दीर्घकाल के पश्चात् सन्तान होने से आपका नाम धूलकँवर रखा। तेरह वर्ष की लघुवय में वास निवासी चिमनलाल जी ओरडिया के साथ आपका पाणिग्रहण हुआ । कुछ समय के पश्चात् ही पति का देहान्त होने पर, आपकी भावना महासती फूलकुंवर जी के उपदेश को सुनकर संयम ग्रहण करने की हुई। किन्तु पारिवारिक जनों के अत्याग्रह के कारण आप संयम न ले सकीं और वि० सं० १६५६ में फाल्गुन बदी तेरस को वास ग्राम में महासती फूलकुंवरजी के पास दीक्षा ग्रहण की । विनय, वैयावृत्य और सरलता आपके जीवन की मुख्य विशेषताएँ थीं। आपने अनेक शास्त्रों को भी कण्ठस्थ किया था। लगभग ३०० थोकड़े आपको कण्ठस्थ थे। आपके महासती आनन्दकुंवरजी, महासती सौभाग्यकुंवरजी, महासती शम्भुकुंवरजी, बालब्रह्मचारिणी शीलकंवरजी, महासती मोहनकुंवरजी, महासती कंचनकुंवरजी, महासती सुमनवतीजी, महासती दयाकुंवरजी, आदि शिष्याएँ थीं। श्रद्धेय सगुद्रुवर्य पुष्करमुनिजी महाराज को भी प्रथम आपके उपदेश से ही वैराग्य भावना जागृत हुई थी। आपका विहार क्षेत्र मेवाड़, मारवाड़, मध्यप्रदेश, अजमेर, ब्यावर था। वि० सं २००३ में आप गोगुन्दा ग्राम में स्थानापन्न विराजी और वि० २०१३ में कार्तिक शुक्ला ग्यारस को २४ घंटे के संथारे के पश्चात् आपका स्वर्गवास हुआ।
महासती लाभकुँवरजी-आपका जन्म वि० सं० १६३३ में उदयपुर राज्य के ढोल ग्राम में हुआ। आपके पिता का नाम मोतीलालजी ढालावत और माता का नाम तीजबाई था । आपका पाणिग्रहण सायरा के कावेडिया परिवार में हुआ था। लघुवय में ही पति का देहान्त हो जाने पर महासती फूलकुंवरजी के उपदेश से प्रभावित होकर वि० सं० १९५६ में सादडी मारवाड में दीक्षा ग्रहण की। आपका कण्ठ बहुत मधुर था । व्याख्यान-कला सुन्दर थी। आपकी दो शिष्याएँ हुईं–महासती लहरकुंवरजी और दाखकुंवरजी। आपका स्वर्गवास २००३ में श्रावण में यशवंतगढ़ में हुआ।
महासती लहरकुंवरजी-आपका जन्म नान्देशमा ग्राम में हुआ। आपके पिता का नाम सूरजमलजी सिंघवी और माता का नाम फूलकुंवर बाई था। आपका पाणिग्रह्ण ढोल निवासी गेगराजजी ढालावत के साथ हुआ। पति का देहान्त होने पर कुछ समय के पश्चात् एक पुत्री का भी देहावसान हो गया। एक पुत्री जिसकी उम्र सात वर्ष की थी उसे उसकी दादी को सौंपकर वि० सं० १९८१ में ज्येष्ठ सुदी बारस को नान्देशमा ग्राम में दीक्षा ग्रहण की । आपकी प्रकृति मधुर व मिलनसार थी। स्तोक साहित्य का आपने अच्छा अभ्यास किया। आपकी एक शिष्या बनी जिनका नाम खमानकुंवरजी है ।* आपका स्वर्गवास २०२६ माह बदी अष्टमी को १२ घंटे के संथारे से सायरा में हुआ। + देखिए-परिचय वर्तमान परम्परा में साध्वियाँ-ले० राजेन्द्र मुनि साहित्यरत्न
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