Book Title: Pushkarmuni Abhinandan Granth
Author(s): Devendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
Publisher: Rajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ : नवम खण्ड
१. मूलाधार के चार पत्रों में व श ष स । २. स्वाधिष्ठान के छः पत्रों में ब भ म य र ल । ३. मणिपूर के दश पत्रों में ड ढ ण त थ द ध न प फ । ४. अनाहत के बारह पत्रों में क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ । ५. विशुद्ध के सोलह पत्रों में अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ ल ल ए ऐ ओ औ अं अः । ६. आज्ञा के तीन पत्रों में ह क्ष ( ? ल) इस वर्ण विभाग से यह शरीर भारती यंत्र या सरस्वती यंत्र बन जाता है।
ब्रह्मबिंदुचक्र जिसे सहस्रारचक्र भी कहते हैं उसमें स्थित मन और शरीर की पाँच इन्द्रियाँ मिलकर यह षट्कोण यंत्र नाम से भी प्रसिद्ध है। नवचक्रों का वर्ण-रंग
मूलाधार का रंग रक्त, स्वाधिष्ठान का अरुण, मणिपूर का श्वेत, अनाहत का पीत, विशुद्ध का श्वेत, ललना का रक्त, आज्ञा का रक्त, ब्रह्मरंध्र का रक्त और ब्रह्मबिंदु का श्वेत वर्ण बताया गया है। चक्रों के तत्त
मूलाधार का पृथ्वी तत्त्व, स्वाधिष्ठान का जल, मणिपूर का अग्नि, अनाहत का वायु, विशुद्ध का आकाश, और आज्ञा का महातत्त्व बताया गया है। अन्य चक्रों के तत्त्व के बारे में निर्देश नहीं मिलता है। चक्रों के तत्त्वबीज ।
मूलाधार का लं बीज, स्वाधिष्ठान का वं बीज, मणिपूर का रं बीज, अनाहत का यं बीज, विशुद्ध का हं बीज, आज्ञा का ॐ बीज है, ऐसा कहा है। चक्रों की अधिष्ठायिका देवियाँ
मूलाधार की डाकिनी, स्वाधिष्ठान की राकिनी, मणिपूर की लाकिनी, अनाहत की काकिनी, विशुद्ध की शाकिनी, ललना की हाकिनी, और आज्ञा की याकिनी देवियाँ अधिष्ठात्री हैं। ये सभी ज्ञानाधिकार की देवियाँ हैं। चक्र-यंत्र का आकार
मूलाधार का आकार चतुष्कोण, स्वाधिष्ठान का चन्द्राकार, मणिपूर का त्रिकोणाकार, अनाहत का षट्कोणाकार, विशुद्ध का गोलाकार, आज्ञा का लिंगाकार, ब्रह्मरन्ध्र का चंद्राकार और ब्रह्मबिन्दु का कमलाकार होता है।
ये वर्ण, रंग, तत्त्व, तत्त्वबीज, अधिष्ठात्री देवियाँ और आकार ध्यान करने में उपयोगी हैं। पिंडस्थध्यान के समय की जाने वाली धारणाओं में इन सबकी जरूरत रहती है। मन्त्रबीजों का ध्यान और फल ।
पदस्थध्यान में मन्त्रबीजों का ध्यान किया जाता है। हरेक चक्र के मन्त्रबीज हैं। मूलाधार का मन्त्रबीज 'ऐं', स्वाधिष्ठान का 'एं ह्रीं क्लीं', मणिपूर का 'श्रीं', अनाहत और विशुद्ध का कोई मन्त्रबीज नहीं बताया है । ललना का 'ह्रीं', आज्ञा का 'ह्रीं क्लीं 'झ्वी' और ब्रह्मरन्ध्र तथा ब्रह्मबिन्दु के मन्त्रबीजों का उल्लेख नहीं है।
मूलाधार में 'ऐं' बीज का श्वेतवर्णी ध्यान करने से सरस्वती देवी सिद्ध होती है। इसकी सिद्धि से कवित्व और वक्तृत्व-शक्ति आती है । लेखनधारा अविच्छिन्न गति से रचना करती है।
स्वाधिष्ठान में 'ऐं' का ध्यान वशीकरण के लिए होता है। स्वाधिष्ठान में "हीं, क्लीं' और 'एं' का ध्यान वशीकरण का फल देता है।
मणिपर में 'श्रीं' का जपाकुसुम जैसा अरुणवर्णी ध्यान वशीकरण और लाभ के लिए किया जाता है।
आज्ञाचक्र में 'ह्रीं' और 'क्लीं' का ध्यान वशीकरण का कार्य करता है, और 'श्वीं' के ध्यान से विष और रोग को दूर किया जाता है।
अन्त में बताया गया है कि इन मन्त्रबीजों से क्या मतलब जबकि मन्त्रबीजों की झंझट में बिना पड़े इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ी में कुंडलिनी शक्ति का ध्यान भुक्ति और मुक्ति देता है। इस तरह यह कुंडलिनी इस लोक में सुख-समृद्धि की प्राप्ति में सहायक बनती है।
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