Book Title: Pushkarmuni Abhinandan Granth
Author(s): Devendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
Publisher: Rajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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भावातीत ध्यान
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के करने से शराब आदि के व्यसनों से मुक्त हो गये जिससे दुर्घटनाएं कम होने लगी और जन-जन के अन्तर्मानस में स्नेह-सद्भावना अंगड़ाइयाँ लेने लगीं।
यह सत्य है कि अतीत काल से चले आ रहे भावातीत ध्यान को महर्षि महेश योगी ने पुनरुज्जीवित किया और उनकी प्रेरणा तथा अथक प्रयास से जनमानस की रुचि इस ध्यान की ओर अधिक बढ़ी। पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने भावातीत ध्यान के द्वारा सम्प्राप्त उपलब्धियों एवं तथ्यों को आधार मानकर इसे 'महर्षि एफेक्ट' (महर्षि-प्रभाव) की संज्ञा प्रदान की है।
भावातीत ध्यान से१. व्यक्ति की चेतना का विस्तार होता है। २. सृजनात्मक एवं रचनात्मक बुद्धि का विकास होता है। ३. गहन विश्राम मिलता है जिससे व्यक्ति की कार्य-क्षमता एवं शक्ति में वृद्धि होने के साथ-साथ स्फूर्ति
आती है। ४. बौद्धिक विकास एवं मानसिक स्पष्टता में वृद्धि होती है। ५. अनेक रोगों जैसे रक्त-चाप सम्बन्धी, हृदय सम्बन्धी, वातजनित, मानसिक, एलर्जी, अस्थमा, नींद न
आना एवं शारीरिक दुर्बलता इत्यादि की चिकित्सा में यह ध्यान विशेष रूप से उपयोगी है। ६. अपने को समाज से पृथक समझने या हीन-भावना अथवा निराशावादी प्रवृत्ति का इस ध्यान द्वारा
उन्मूलन होता है। ७. यह चिन्ताओं से मुक्ति दिलाता है। ८. अपने आचरण की चिन्ता नहीं करनी पड़ती। मन स्वाभाविक रूप से शिष्टतापूर्ण व्यवहार करने
लगता है। ६. दृष्टिकोण विशाल बन जाता है। १०. कार्यक्षमता तथा उत्पादन में वृद्धि होती है। ११. पूर्णरूपेण शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक विकास होता है । १२. मानसिक शान्ति के साथ-साथ आन्तरिक प्रसन्नता का अनुभव होता है। १३. आत्मानन्द का लाभ होता है।
महर्षिजी ने भावातीत ध्यान शैली बौद्धिक स्तर पर समझाने के लिए एक नवीन साधना-पद्धति को जन-जन के सम्मुख प्रस्तुत किया जिसे चेतना-विज्ञान कहते हैं। इसे अनेक विश्वविद्यालयों ने अपने पाठ्यक्रम में स्थान दिया है।
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मोहोन्मत्तं जगद्वीक्ष्य, करुणापूर्णलोचनः । दशितं जिनवंबैस्तु, साम्ययोगरसायनम् ॥ कषायैरमिभूतानां, सत्त्वानां मूढचेतसाम् । मनांसि निर्मलानि स्युः, संसर्गे समतावताम् ॥
-गि. प. शाह 'कल्पेश' ।
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