Book Title: Pushkarmuni Abhinandan Granth
Author(s): Devendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
Publisher: Rajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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जैन रामकथा की पौराणिक और दार्शनिक पृष्ठभूमि
बलात्कार- पूर्वक उससे वह सम्भोग नहीं करेगा।' इसलिए उसे सीता को प्रसन्न कर अथवा उसे डरा-धमका कर विवाह करने के लिए प्रयत्न करना आवश्यक था ।
इधर लक्ष्मण ने खर-दूषण - त्रिशिरा को सेना सहित छिन्न-भिन्न कर डाला और उनका राज्य विराधित को दे दिया। फिर सीता को अपहृत समझकर वे उसे खोजते हुए दक्षिण की ओर चल दिए । विराधित की सूचना के अनुसार, किष्किन्धा के निकट आने पर सुग्रीव राम-लक्ष्मण से मिला । उससे मित्रता करने के पश्चात् लक्ष्मण ने कोटि- शिला को उठाकर अपने बल का प्रमाण दिया। फिर माया सुग्रीव को पराजित कर राम-लक्ष्मण ने सुग्रीव को उसकी पत्नी तारा और राज्य की पुन: प्राप्ति करा दी। सुग्रीव पुनः किष्किन्धा का राजा बन गया। यद्यपि वानरों और राक्षसों की अठारह पीढ़ियों से मित्रता थी, फिर भी सुग्रीव अपने बहनोई रावण से सीता को प्राप्त कर लेने में राम की सहायता करने के लिए तैयार हो गया। सीता की खोज कर लेने की क्षमता केवल हनुमान में ही है, यह समझकर सुग्रीव ने हनुमान को राम के पक्ष में सम्मिलित कर लिया । हनुमान चन्द्रनखा का जामाता था, फिर भी रावण को कुमार्ग पर बढ़ते देखकर, वह उसके विरोध में राम का साथ देने को तैयार हो गया। अनेक संकटों का सामना करते हुए और महेन्द्र आदि अनेक राजाओं को पराजित कर राम के पक्ष में सम्मिलित कराते हुए वह लंका में पहुँचा । वह सीता से मिला ; उसने रावण को सदुपदेश दिया और लंका को उध्वस्त करके लौट आया। फिर राम ने वानर सेना सहित लंका पर आक्रमण किया । मार्ग में समुद्र, सेतु और सुवेल नामक राजा राम के पक्ष में सम्मिलित कराए गए। विभीषण भी रावण के पक्ष को छोड़कर राम की शरण में आ गया ।
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अंगद ने राम के दूत के रूप में रावण से मिलकर समझौता कराने का यत्न किया, परन्तु रावण और इन्द्रजित ने उसे अपमानित करते हुए उसकी सूचना को अस्वीकार किया। युद्ध शुरू हो गया। पहले दो दिनों में रावण के हस्त, प्रहस्त, आक्रोश आदि महायोद्धा मारे गए तीसरे दिन के युद्ध में कुम्भकर्ण ने हनुमान को पकड़ लिया, परन्तु अंगद ने उसे मुक्त करा लिया । सुग्रीव, भामण्डल आदि को इन्द्रजित ने नागपाश में के अनुसार राम ने गारुडीविद्या का प्रयोग कर उन्हें मुक्त कर लिया। और राम ने कुम्भकर्ण को पकड़ लिया। यह देखकर रावण ने विभीषण पर एक शक्ति चला दी, तो उसे बचाने के लिए आगे बढ़ा हुआ लक्ष्मण उस शक्ति से आहत हो गिर पड़ा। इस अवसर पर प्रतिचन्द्र की सूचना के अनुसार हनुमान द्रोणधन राजा की कन्या विशल्या को ले आया और उसके स्नान-जल से लक्ष्मण सचेत हो गया। फिर लक्ष्मण और
आबद्ध कर लिया, फिर विभीषण के कथन चौथे दिन के युद्ध में लक्ष्मण ने इन्द्रजित को
विशल्या का विवाह हो गया ।
तदनंतर रावण ने नंदीश्वर के उत्सव के अवसर पर बहुरूपिणी विद्या को सिद्ध किया । इधर अंगद आदि ने उसे विचलित करने का बहुत प्रयास किया, रावण की स्त्रियों को भी अपमानित किया था । फिर भी रावण अविचल रहा । अनन्तर उसने सीता का हृदय परिवर्तन कर लेने का यत्न किया । परन्तु उसे हार माननी पड़ी। फिर उसने निश्चय किया कि राम-लक्ष्मण को पराजित करके वह उन्हें सीता लौटा देगा ।
अंत में राम और रावण का सात दिन युद्ध हो गया । तत्पश्चात् लक्ष्मण आगे बढ़ा। उनके युद्ध के ग्यारहवें दिन रावण ने लक्ष्मण की ओर अपना चक्र फेंक दिया। परन्तु वह चक्र लक्ष्मण के हाथ में अनायास आ गया । लक्ष्मण ने उसी चक्र से रावण का वध किया ।
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तदनन्तर विभीषण ने रावण का दाह संस्कार किया। फिर सीता को सम्मानपूर्वक राम के पास लाया गया । मुनि अप्रमेयबल का उपदेश सुनने पर इन्द्रजित, कुम्भकर्ण, मंदोदरी आदि ने दीक्षा ग्रहण की। फिर विभीषण का राज्याभिषेक सम्पन्न हुआ। लंका में छः वर्ष बिताने के बाद राम आदि अयोध्या लौट गए। लक्ष्मण ने राज्य स्वीकार किया और भरत और कैकेयी ने प्रव्रज्या ग्रहण की।
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इसके पश्चात् जैन राम कथा में निम्नलिखित घटनाएँ मिलती हैं—
शत्रुघ्न द्वारा मथुरा के राजा मधु को पराजित करना - राम द्वारा गर्भवती सीता को वन में छुड़वा देना- राम के बहनोई वज्र जंघ द्वारा उसे आश्रय देना- लवण-अंकुश का जन्म, विवाह, राम-लक्ष्मण का सामना करना, लक्ष्मण के चक्र का प्रभावहीन हो जाना, नारद द्वारा उनका परिचय कराना -सीता की अग्नि परीक्षा, दीक्षा ग्रहण कर आर्यिका होना, मृत्यु के पश्चात् सोलहवें स्वर्ग में इन्द्र के रूप में जन्म लेना ।
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