Book Title: Pushkarmuni Abhinandan Granth
Author(s): Devendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
Publisher: Rajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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देवेन्द्र कीर्ति (कालिकापुराण)
शान्तिकीति
I कल्याणकीर्ति
1 गुणकीति
चन्द्रकीर्ति
माणिकनन्दि
I
जनार्दन
(श्रेणिकचरित्र, सन् १७७५)
महीभूषण
महाकीति
I
( शीलपताका) अजित कीर्ति
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1 अनीति
मराठी जैन साहित्य
सटवा
( शिवाने मिसंवाद)
I
६८१
( दशलक्षणव्रत कथा )
I भीमचन्द्र
(गुरु बारती)
उपर्युक्त तालिका में उल्लिखित विमना पंडित के कई छोटे गीत भी हैं इनकी मुनिसुव्रत विनती हिन्दी में है। महीचन्द्र की ऊपर उल्लिखित बड़ी रचनाओं के अतिरिक्त कुछ कथाएँ, स्तोत्र, गीत और आरतियाँ भी हैं। इनका काली- गोरी संवाद हिन्दी में है। यहाँ उल्लिखित गीत विविध छन्दों में हैं, पुराण और कथाएं ओवी छन्द में हैं ।
मकरन्द
(रामटेक)
( वर्णन )
सेनगण की एक परम्परा कोल्हापुर में भी थी। इसके भट्टारक जिनसेन की तीन रचनाएँ जम्बूस्वामीपुराण, उपदेशरत्नमाला तथा पुण्यास्त्रवपुराण (सन् १८२१ से १८२६) प्राप्त हैं । इनके शिष्य गिरिसुत ठकापा का पाण्डव पुराण (सन् १८५० ) प्राप्त है । ये सब ग्रन्थ ओवी छन्द में हैं ।
इन प्रमुख परम्पराओं से सम्बद्ध लेखकों के अतिरिक्त भी कुछ लेखक हैं। इनमें दामा पंडित का जम्बूस्वामीचरित्र (सन् १६७५ के करीब ) तथा लक्ष्मीचन्द्र की मेघमालाव्रत एवं जिनरात्रिव्रत की कथाएँ (सन् १७२८ ) तथा कवीन्द्र सेवक के अभंग प्रमुख हैं ।
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लगभग चारंसी वर्षों के समय में (सन् १४५० से १८५०) रचित इन रचनाओं के विषय उनके नामों से स्पष्ट हैं। अधिकतर संस्कृत, गुजराती और कन्नड़ की कथाओं को मराठी में लाने का प्रयास हुआ। प्रसंगवंश कुछ तत्त्वचर्चा, आचरण सम्बन्धी उपदेश आदि भी इनमें प्राप्त होते हैं। वर्णन विस्तार में रोचकता की दृष्टि से श्र ेणिक, यशोधर, सुदर्शन, जीवंधर की कथाएँ अच्छी हैं। इनमें से कई ग्रन्थ इस शताब्दी के प्रारम्भ में छपे थे किन्तु सुसंपादित न होने के कारण मराठी साहित्य के इतिहास लेखकों का ध्यान उनकी ओर नहीं गया। उस समय जैन और जैनेतर पंडितों में सम्पर्क न होने से भी ऐसा हुआ । विगत दो दशकों में सोलापुर की जीवराज ग्रन्थमाला ने इस साहित्य के सम्पादन और प्रकाशन में अच्छा योग दिया है। श्री सुभाषचन्द्र अक्कोले का इस विषय पर शोध-प्रबन्ध 'प्राचीन मराठी जैन साहित्य' सुविचार प्रकाशन मंडल, पूना-नागपुर ने प्रकाशित किया है। अधिक विवरण जानने के लिए विद्वानों को उसे देखना चाहिए।
माधुनिक मराठी में जंग लेखकों की रचनाएँ विविध रूपों में प्रकाशित हुई है। सोनापुर के सेठ हीराचन्द नेमीचन्द दोशी ने सन् १८८४ में जैन बोधक मासिक पत्र के प्रकाशन से इस कार्य का शुभारम्भ किया । यह पत्र अब साप्ताहिक रूप में चल रहा है। दूसरा दीर्घजीवी पत्र प्रगति जिनविजय दक्षिण महाराष्ट्र जैन सभा का मुखपत्र है जो सन् १९०१ में शुरू हुआ था बाहुबली (जिला कोल्हापुर) से श्री माणिकचन्द मौसीकर के सम्पादन में मासिक सम्मति ने गत वर्ष अपनी रजत जयन्ती मनाई। कुछ पत्रिकाएँ कुछ वर्ष ही चल पाई किन्तु अपने समय में उनका काफी महत्त्व रहा। इनमें जैन विद्यादानोपदेश प्रकाश, वर्षा (१८९२), जैन भास्कर, वर्धा (१८६८), वन्दे जिनवरम्, बार्शी (१९०८ ) सुमति, वर्षा (११२), जैन भाग्योदय, प्रभावना ( इनका निश्चित वर्ष ज्ञात नहीं हुआ) उल्लेखनीय है। अतिशीघ्र कवि
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