Book Title: Pushkarmuni Abhinandan Granth
Author(s): Devendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
Publisher: Rajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन प्रन्थ : षष्ठम खण्ड
-'बुधजन विलास' ४.
६३ वही, पृ० १७६ ६४ छार कषाय त्यागी या गहि ले समकित केशर घोरी ।
मिथ्या पत्थर डारि धारि लै, निज गुलाल की मोरी ।। ६५ वही, ५१ ६ ६ वही, पृ० ४६ ६७ मेरो मन ऐसी खेलत होरी।
मन मिरदंग साजकरि त्यारी, तन को तमूरा बनोरी। सुमति सुरंग सारंगी बजाई, ताल दोउ करजोरी।
राग पांचौ पद को री । मेरो मन ॥१॥ समवृति रूप नीर भर झारी, करुना केशर घोरी। ज्ञानमई लेकर पिचकारी, दोउ कर माहिं सम्होरी।
इन्द्री पांचों सखि बोरी । मेरो मन ॥२॥ चतुरदान को है गुलाल सो, भरि भरि मूठि चलोरी। तप मेवा की भरि निज झोरी, यश की अबीर उड़ोरी।
रंग जिनधाम मचोरी । मेरो मन ॥३॥ दौलत बाल खेलें अस होरी, मवमव दु:ख टलोरी। शरना ले इक श्रीजन को री, जग में लाज हो तोरी।
मिल फगुआ शिव होरी । मेरो मन ॥४॥ ६८ वही, पृ० २६
-दौलत जैन पद संग्रह, पृ०२६
-----पुष्क
र संस्म
रण-o---------------------------------------
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आदमी बनो विहार करते-करते हम एक छोटे से गांव में पहुंचे और गुरुदेवश्री स्वयं भिक्षार्थ गये । एक घर में आप जा रहे थे कि एक आदमी ने टोका-यहाँ कोई आदमी नहीं है भीतर कहां जाते हो?
इसीलिए तो जा रहा हूँ भाई, हमारा तो काम ही है जानवरों को आदमी बनाना और आदमी को देवता बना देना ।
टोकने वाले ने गुरुदेव की आँखों में झांककर देखा, बाबा तो राजयोगी मालूम पड़ता है, बड़ा तेजस्वी है । बोला-अच्छा-अच्छा जाओ। रोटी ले आओ।
आपश्री ने कहा-नहीं, अब तो पहले तुम मेरा उपदेश सुनकर आदमी बनो, फिर ही रोटी लूगा....और आपने सचमुच ही उसे उपदेश सुनाकर आदमी ही । क्या, भक्त बना लिया।
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