Book Title: Pushkarmuni Abhinandan Granth
Author(s): Devendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
Publisher: Rajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
१५८
श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ
सम्प्रदाय उतनी बुरी नहीं जितना सम्प्रदायवाद बुरा है। सम्प्रदायवाद के काले चश्मे ने हमारे को सत्य-तथ्य को पहचानने नहीं दिया। इसलिए सम्प्रदायवाद समाप्त कर शुद्ध जैनत्व को हम अपनायें ।
आपश्री एक ओर समीचीन नवीन विचारों को ग्रहण करने के पक्षपाती हैं, दूसरी ओर आपको पुराने विचारों से प्यार है । नवीनता और प्राचीनता ये दोनों प्रगति के पैर हैं। एक उठा हुआ है और दूसरा टिका हुआ है। आप दोनों पैर आकाश में उठाकर उड़ना भी नहीं चाहते और न दोनों पैर पृथ्वी पर टिकाकर स्थिर रहना चाहते । वे निरन्तर और निर्बाध प्रगति करना चाहते हैं। उसका क्रम यही है कुछ गतिशील हो, कुछ स्थिर हो । गति पर स्थिति का और स्थिति पर गति का प्रभाव गिरता रहे। कुछ लोग नयी बात से कतराते हैं और पुरानी बात से चिपटे रहते हैं । उनके अन्तर्मानस में पुराने के प्रति विश्वास और नये के प्रति अविश्वास होता है। किन्तु आप प्राचीनता की भूमि पर अवस्थित होकर नवीनता का स्वागत करने में संकोच नहीं करते। वस्तुतः आप नवीनता और प्राचीनता के बीच में पुल हैं, जो दोनों तटों को मिलाता है। आपश्री में हठवादिता नहीं है किन्तु गहन-चिन्तनशीलता और दूसरे व्यक्तियों और सम्प्रदायों के प्रति सहनशीलता है। आपका जीवन मूच्छित और परास्त नहीं किन्तु उसमें आस्था का अमर आलोक है और सामर्थ्य का मधुर संगीत है।
पष्क
र-वाणी -0--0--0--0---0--0--0-----------------0-0--0-0-0--2
तोता जैसा सुन्दर और मानव-वाणी बोलने में समर्थ पक्षी भी भ्रम और दाने के लालच के बशबंधन में फंस जाता है ।
कहते हैं कि पारधी जब तोते को पकड़ना चाहता है तो खुले स्थान पर दाने बिखेर देता है, एक डंडे पर नाली चढ़ा देता है और नीचे पानी की थाली भर कर रख देता है । तोता दाने के लालच में उस नाली पर बैठता है,
और बैठते ही देह भार के कारण नाली उसको उल्टा कर देती है । तोता जब नीचे देखता है तो उसे गहरा पानी दिखाइ देता है, वह उल्टा लटका उड़ नहीं सकता और समझता है कि हाय छोडूंगा तो पानी में डूब मरूंगा । इसी भ्रांति में संभ्रमित होता है, कि तब तक छुपा पारधी (शिकरी) उसे पकड़ लेता है। संसार में ऐसे शिकारी पद-पद पर प्रलोभन का दाना बिखेरे छुपे खड़े हैं मानव को भ्रमित कर वे अपने जाल में फंसा लेते हैं।
xxxx
कहा जाता है कि बत्तख सदा पानी में रहता है, किन्तु कभी पानी में डूबता नहीं । पानी का प्रवाह चाहे जितना तेज हो जाये, वह स्वभावतः सदा उसके ऊपर-ऊपर ही तैरता रहता है।
जीवन में ऐसी निस्पृहता सीखनी है। धन, वैभव, सत्ता और विषयों के जल में रहने वाले मानव ! कभी उनमें डूबों मत, सत्ता आदि सुखों के साधन चाहे जितने बढे, तुम बत्तख की भाँति सदा उन पर तैरते ही रहो, । डूबो मत ।
h-o--0-0--0------------------------------------0-0-0-0--0
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org