Book Title: Pushkarmuni Abhinandan Granth
Author(s): Devendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
Publisher: Rajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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श्री पुष्कर मुनि अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड
स्वप्न ५ – बुद्ध एक गोमय (गोबर) के पर्वत पर चल रहे हैं, किन्तु फिर भी गति अस्खलित है । न फिसल रहे हैं और न गिर रहे हैं ।
अर्थ - भौतिक सुख सामग्री के बीच अनासक्त रहेंगे ।*
फलश्र ुति
भगवान महावीर तथा महात्मा बुद्ध ने ये स्वप्न साधना काल की उस अवस्था में देखे जब उनका अन्तःकरण साधना से अत्यधिक परिष्कृत व निर्मल हो चुका था और सिद्धि लाभ ( कैवल्य तथा बोधि) की प्राप्ति हेतु उत्कण्ठित हो रहा था । मानस विज्ञान की दृष्टि से उस अवस्था में उनके मन में भावी जीवन की अनेक परिकल्पनाएं, अनेक संभावनाएँ आलोड़ित हो रही होंगी, मोहनाश, कैवल्य लाभ, संघ स्थापना और जन-कल्याण की तीव्र इच्छा अन्तःकरण को, चेतन व अचेतन मन को आवृत किये हुए होगी इसलिए उसी प्रकार की संभावनाएँ और हृव्य स्वप्न में परिलक्षित हों, यह सहज ही संभव है और स्वप्न शास्त्र उन्हीं इच्छाओं के आधार पर उनका भावी फल सूचित करता है । मोक्षफल सूचक १४ स्वप्न
भगवती सूत्र में १४ प्रकार के ऐसे स्वप्नों की चर्चा है जिनका फल दर्शक की जीवन-मुक्ति (निर्माण) से सम्बन्धित बताया गया है । ३५
१. हाथी, घोड़ा, बैल, मनुष्य, किन्नर, गंधर्व आदि की पंक्ति को देखकर जागृत होना । इसका अर्थ हैउसी भव में दुःखों का अन्त कर मोक्ष-सुख की प्राप्ति होना ।
२. समुद्र के पूर्व-पश्चिम छोर को छूने वाली लम्बी रस्सी को हाथों से समेटते देखना । इसका अर्थ है जन्ममरण की रस्सी को समेटकर उसी भव में मुक्त होना ।
३. लोकान्त पर्यन्त लम्बी रस्सी को काटना । इस स्वप्न का भी यही अर्थ है- जन्म-मरण से मुक्ति । ४. पाँच रंगों वाले उनझे हुए सूत के गुच्छों को सुलझाना। वह स्वप्न देखने वाला अपनी मव-गुत्थियों
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को सुलझा कर उसी भव में मुक्त होता है ।
५. लोह, ताम्बा, कथीर और शीशे की राशि (ढेर ) को देखे और स्वयं उस पर चढ़ता जाय। इस स्वप्न का अर्थ ऊर्ध्वारोहण अर्थात् निर्वाण है ।
६. स्वर्ण, रजत, रत्न और वज्र रत्न की राशि देखे, और उस पर आरोहण करे तो इसका भी फल हैऊर्यारोहण-मुक्ति-सा
७. विशाल घास या कचरे के ढेर को देखे और उसे अपने हाथों से बिखेर दे तो इसका भी फलित है-उसी भव में मोक्ष-गमन ।
८. स्वप्न में शरस्तम्भ, वीरणस्तम्भ, वंशीमूल स्तम्भ और वल्लिमूल स्तम्भ को देखे और उसे स्वयं अपने हाथों से उखाड़कर फेंक देवे तो इस स्वप्न का फल भी उसी भव में संसार उच्छेद (मुक्ति) करना है ।
६. स्वप्न में दूध, दही, घृत और मधु का घड़ा देखे और उसे उठा ले तो इसका फल भी उसी भव में निर्वाणसूचक है।
१०. मद्य घट, सौवीर घट, तेल घट और वसा (चर्बी ) घट देखकर उसे फोड़ डाले तो इसका भी फल उसी भव में निर्वाण-गमन सूचित करता है ।
११. चारों दिशाओं में कुसुमित पद्म सरोवर को देखकर उसमें प्रवेश करना - इस स्वप्न का भी फल है उसी भव में मोक्ष गमन ।
१२. तरंगाकुल महासागर को भुजाओं से तैरकर पार पहुँच जाना — इसका भी फल उसी जन्म में संसार सागर से पार होना है ।
१३-१४ श्रेष्ठ रत्नमय भवन अथवा विमान को देखकर उसमें प्रवेश करता स्वप्न देखे तो इन दोनों का भी फल सूचित करता है कि वह — मुक्ति भवन या मुक्ति विमान में प्रविष्ट होगा - उसी जन्म में 1
फल- विचार
इन स्वप्नों का एक निश्चित अर्थ आगमों में बताया है कि इन उत्तमस्वप्नों का दर्शन मनुष्य की देहआसक्ति, मव-बंधन तथा राग-द्वेष की श्रृंखला से मुक्त होकर ऊर्ध्वगामी होना और मुक्तिरूप भवन में प्रवेश करना
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